Thursday, July 31, 2025
spot_img
Homeहाई कोर्टइलाहाबाद हाईकोर्ट की तलाक को लेकर विशेष टिप्पणी, कहा, छोटे झगड़ों पर...

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तलाक को लेकर विशेष टिप्पणी, कहा, छोटे झगड़ों पर तलाक कानून क्रूरता के रूप में देखा, तो कई शादियाँ टूट जायेगी

spot_img

इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रथम अपील संख्या 295/2020 रोहित चतुर्वेदी बनाम नेहा चतुर्वेदी के मामले में सुनवाई करते हुये न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने कहा, “अगर पति-पत्नी के बीच होने वाले छोटे-छोटे झगड़ों को विवाह बिच्छेद (तलाक) कानूनों के तहत क्रूरता के रूप में देखा जाने लगेगा, तब तो कई शादियाँ टूट जायेगी और हर कोई इस आधार पर तलाक मांगने लगेगा, अदालत ने याचिकाकर्ता को सीधे अनुमति देने की बजाय अलग रह रहे विवाहित जोड़े को न्यायिक रूप से अलग होने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी 3 नवंबर को की।

याचिका में पत्नी पर क्रूरता का लगाया आरोप

इलाहाबाद हाईकोर्ट में याची रोहित चतुर्वेदी की ओर से अधिवक्ता सतीश चौर्त्वेदी ने याचिका दाखिल की थी, जिसमें याची की ओर से अधिवक्ता ने बताया कि 5 मई 2013 को याची की शादी निधि से हुई थी। दोनों 01 जुलाई 2014 एक साथ रह रहे थे। जुलाई, 2014 के बाद से दोनों लोग एक दिन भी साथ नहीं रहे, जिस पर याची ने क्रूरता का हवाला दिया। क्रूरता के कृत्यों के संबंध में, यह प्रस्तुत किया गया है कि प्रतिवादी विवाह संपन्न करने से इंकार कर दिया। उसने 15 नवंबर 2013 को अपीलकर्ता के माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार किया और उनके साथ मारपीट की। इसके बाद 4 अगस्त.2014 को उसने अपीलकर्ता पर चोर होने का आरोप लगाते हुए उसका पीछा करने और हमला करने के लिए एक भीड़ को उकसाया था, साथ ही प्रतिवादी द्वारा दहेज की मांग आदि का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई, साथ ही प्रतिवादी ने एसएसपी, गाजियाबाद को लिखे कुछ पत्रों का भी संदर्भ दिया, साथ ही तलाक की कार्यवाही के दौरान, प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ उसकी भाभी के साथ अवैध संबंध का घृणित आरोप लगाने के कारण क्रूरता के लिए अतिरिक्त अधिनियम का अनुरोध किया गया।

पीठ ने छोटे-छोटे झगड़े को क्रूरता मानने से किया इनकार

इस मामले में जिस पर सुनवाई करते हुये न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने हर छोटे-छोटे  झगड़े को क्रूरता मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि अगर कोर्ट छोटे-छोटे विवादों या घटनाओं को पहचानने और उन पर कार्रवाई करने और उन्हें क्रूरता के तत्वों की पूर्णता के रूप में पढ़ने लगे तो कई विवाह, जहां पक्षकार अच्छे संबंधों का आनंद नहीं ले रहे हैं, बिना किसी वास्तविक क्रूरता के ही खत्म हो सकते हैं।

विवाद के बाद संबंध रखने के आरोप होने चाहिए स्पष्ट

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ  ने यह भी कहा, “यदि कोई व्यक्ति अपने या जीवन साथी पर विवाह के बाद संबंध रखने का आरोप लगाता है, तो आरोप को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए और तलाक की कार्यवाही के दौरान इसे अदालत की कल्पना पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। एक पक्ष का दूसरे पक्ष के साथ अवैध संबंध होने का आरोप हर हाल में स्पष्ट होना चाहिए। अदालत ने पक्षों द्वारा दी गई दलील पर विस्तृत विचार किया है और यह पाया गया है कि दोनों पक्षों के बीच एक निर्विवाद मामला था, उनके बीच विवाह संपन्न हुआ था, लेकिन यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि इसके लिए दोष प्रतिवादी पर था। वादी-अपीलार्थी द्वारा लगाये गये तथ्य अप्रमाणित पाये गये।

प्रतिवादी की ओर से भी रखे गए तर्क

वही पीठ ने ने कहा कि निचली अदालत ने आगे कुछ घटनाओं पर विचार किया है। जिसमें प्रतिवादी ने दावा किया कि उसने वादी-अपीलकर्ता से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन उसे रोका गया था। इसी संदर्भ में विद्वान न्यायालय गाजियाबाद ने 4 अगस्त 2014 की घटना की विवेचना की है। उस संबंध में यह नोट किया गया है कि प्रतिवादी, अपीलकर्ता से मिलने उसके आवास नीलकंठ अपार्टमेंट, जी.टी.रोड, गाजियाबाद गया था। हालाँकि, वादी-अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के कहने पर उसे आवासीय सोसायटी में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। अंत में, जब वादी-अपीलकर्ता बाहर आया, और उससे बात करने का प्रयास किया था। चूँकि प्रतिवादी, अपीलकर्ता से मिलने से कतराती थी, इसलिए वह उसके पीछे भागी। उस सीमा तक घटना प्रतिवादी द्वारा विवादित नहीं है। उसके बाद जो हुआ वह विवादित है, जिसके बाद अपीलकर्ता, प्रतिवादी ने  चिल्लाना शुरू कर दिया, जिस पर भीड़ इकट्ठा हो गई और वादी-अपीलकर्ता का पीछा किया और उसके साथ मारपीट की तथा उसे और उसके माता-पिता को भी रोक लिया। दूसरी ओर, प्रतिवादी का दावा है कि भीड़ ने स्वयं ही वादी-अपीलकर्ता का पीछा किया और उसे तथा अन्य को रोक लिया। हालाँकि, उसने इस तथ्य को स्वीकार किया कि पुलिस भी मौके पर आई थी और वादी-अपीलकर्ता और उसके माता-पिता को रोका था।

कोर्ट ने विवाद को गंभीर माना

अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पक्षों के बीच गंभीर विवाद हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि दोनों पक्षों का दावा है कि शादी दस साल की लंबी अवधि में कभी संपन्न नहीं हुई। ऐसा भी प्रतीत होता है कि गंभीर विवाद मौजूद है जो 4 अगस्त 2014 की घटना का कारण हो सकता है। प्रथम दृष्टया यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि भीड़ ने वादी-अपीलकर्ता का स्वयं पीछा किया होगा और उसे और उसके माता-पिता को रोका होगा और बिना किसी अन्य घटना के उन्हें पुलिस को सौंप दिया होगा। यह ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसा आचरण परिवार के सदस्यों के भीतर सामान्य आचरण नहीं हो सकता है। केवल शर्मिंदगी पैदा करने के उद्देश्य से झूठे आरोप पर भीड़ को उकसाना कभी भी सामान्य आचरण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। वहीं, न तो कोई औपचारिक गिरफ्तारी हुई और न ही कोई एफ.आई.आर. इस तरह का झूठा आरोप लगा कर मामला दर्ज कराया गया है. इस प्रकार, यह क्रूरता के उन तत्वों को पूरा नहीं कर सकता है जो तलाक की डिक्री देने के प्रयोजनों के लिए स्थापित किए जाने आवश्यक हैं।

कोर्ट ने कहा, “यदि अदालतें छोटे-छोटे विवादों या घटनाओं को पहचानें और उन पर कार्रवाई करें और उन्हें क्रूरता के अवयवों की पूर्णता के रूप में पढ़ें, तो कई विवाह, जहां पक्षकार अच्छे संबंधों का आनंद नहीं ले रहे हैं, बिना किसी वास्तविक क्रूरता के विघटन के संपर्क में आ सकते हैं। अधिनियम के तहत क्रूरता को परिभाषित नहीं किया गया है, फिर भी यह काफी गंभीर कार्य होना चाहिए क्योंकि यह किसी विवेकशील व्यक्ति को उनके सामने आने वाले वैवाहिक कलह को हल करने का अवसर या दोषसिद्धि नहीं दे सकता है या उन पर वैवाहिक जीवन जारी रखने का बोझ नहीं डाल सकता है। इस तरह के कृत्यों में स्वाभाविक रूप से बहुत गंभीर प्रकृति की चीजें या घटनाएं शामिल होनी चाहिए जिनका रिश्ते पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है जैसे कि पार्टियों को सुलह की तलाश करने से रोका जा सकता है। हमारे सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचा सके कि प्रतिवादी द्वारा आपराधिक अपराध के रूप में लगाए गए आरोप स्पष्ट रूप से झूठे थे। ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि साक्ष्य निम्न विद्वान न्यायालय के समक्ष उस सीमा तक प्रस्तुत किये गये हैं। इसलिए, उन आरोपों पर भी कार्रवाई करना, क्रूरता के कमीशन का अनुमान लगाना मुश्किल है।

कोर्ट ने अवैध संबंध के आरोप में कहा कि, हमने पाया कि आरोप स्पष्ट रूप से नहीं लगाया गया था क्योंकि वर्तमान अपीलकर्ता के उदाहरण पर क्रूरता का आरोप उत्पन्न हो सकता है। वादी-अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए अतिरिक्त दलीलों के पैराग्राफ ई में केवल इतना कहा गया है कि कुछ समय बाद प्रतिवादी के ससुराल वाले अपने मूल निवास स्थान इटावा चले गए। और याचिकाकर्ता का भाई अपनी नौकरी पर चला गया. याचिकाकर्ता प्रतिवादी के कमरे में सोने के बजाय अपनी भाभी और उनके बच्चों के साथ सोता था और हमेशा शिकायतकर्ता से दूरी बनाए रखता था। अवैध संबंध के अस्तित्व का अनुमान लगाने के लिए, इसे न्यायालय की कल्पना पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए कि पक्ष तथ्यात्मक आरोप के माध्यम से क्या कहना चाहते होंगे। एक पक्ष का दूसरे पक्ष से अवैध संबंध होने का आरोप स्पष्ट होना चाहिए। यहां, प्रतिवादी ने केवल इतना ही कहा होगा कि दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक संबंधों का सम्मान करने के बजाय, वर्तमान वादी-अपीलकर्ता ने अपनी भाभी और उसके बच्चों के साथ रहने वाले दूसरे कमरे में सोना पसंद किया। इस प्रकार, प्रतिवादी द्वारा अवैध संबंध का आरोप नहीं लगाया गया था।

अदालत ने कहा कि ऐसे तथ्यों में हम पाते हैं कि इस स्तर पर सीमित हस्तक्षेप की आवश्यकता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच विवाह संपन्न हुए दस साल बीत चुके हैं। उन्होंने अब नौ साल से अधिक समय तक एक साथ निवास नहीं किया है। इस शादी से कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ है और आज भी किसी सुलह की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। तदनुसार, डिक्री को संशोधित किया जाता है। हम ऊपर उल्लिखित परिस्थितियों में वादी-अपीलकर्ता को न्यायिक पृथक्करण का आदेश देना उचित मानते हैं।

आदेश की प्रति यहाँ से डाउनलोड कर प्राप्त सकते है

ALLAHABAD_ROHIT_NIDHI 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

Recent Comments