इलाहाबाद उच्च न्यायालय की कोर्ट नंबर 46 में न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने 7 अगस्त 2023 को CAPITAL CASES NO. 3809 OF 2015 WITH Reference No. 10 Of 2015 के अपीलार्थी जुगल बनाम राज्य सरकार उत्तर प्रदेश के वाद जुगल को फाँसी की सजा से बरी कर दिया है, जिसको ललितपुर जनपद की अपर जिला सत्र फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपनी सास और साले को जलाकर मारने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी। न्यायालय ने कहा कि उसका अपराध उचित संदेह से परे स्थापित नहीं हो सका।
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम मामले के तथ्यों में पाते हैं कि निचली अदालत ने गवाहों की गवाही की सावधानी पूर्वक जांच नहीं की है और अभियोजन पक्ष के मामले को उसके आधार पर स्वीकार कर लिया है। मृत्यु पूर्व बयान के मूल्यांकन के संबंध में कानून को भी वर्तमान मामले के तथ्यों में सही ढंग से लागू नहीं किया गया है , क्योंकि इससे आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है।
यह मामला ललितपुर जनपद का था। 17 जून, 2013 को जगत पुत्र काशी पर आरोप लगा था कि वह अपनी पत्नी और बेटी के बारे में जानकारी करने के लिये ससुराल पहुंचा था, जिस पर ससुराल के लोगों ने उसे बताया कि उसकी पत्नी और बेटी घर नहीं आये है। जिस पर जगत द्वारा ससुराल में गाली-गलौज की गई और रात में लगभग 1.00 बजे उसने सास चमेली बाई और साले दीपचंद्र पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। दोनों लोगों को इलाज के लिये अस्पताल ले जाया गया, जहां आरोपी की सास की मौके पर ही मौत हो गई और उसके साले ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था। इस मामले में अपर सत्र न्यायालय फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मृतक/दीपचंद (आरोपी के साले) के मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर बहुत अधिक भरोसा किया और कोर्ट को यह बताया गया कि आरोपी की पत्नी ने घटना की तारीख वाले दिन अपनी बेटी की शादी की थी, जिससे आरोपी आवेश में था क्योंकि वह लड़की की शादी नहीं करने देना चाह रहा था, इससे नाराज होकर उसने सास और साले की जलाकर हत्या कर दी।
अपर सत्र न्यायालय फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश ने आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 504 के तहत आरोप साबित पाया और उसे मौत की सजा सुनाई। इस इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों और वकीलों द्वारा दी गई दलीलों का विश्लेषण करने के बाद उच्च न्यायालय ने शुरुआत में पाया कि गवाहों की गवाही आरोपी के घर आने के तथ्य के बयान तक ही सीमित थी। मृतक के बारे में और उसकी पत्नी और बेटी के बारे में पूछताछ करने पर गवाहों और अभियुक्तों के बीच क्या बातें हुईं या क्या-क्या बातें हुईं, इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया गया, जिससे वह इस हद तक क्रोधित हो गया कि उसने बाद में अपने दो ससुराल वालों की हत्या कर दी।
न्यायालय ने एमिकस क्यूरी राजर्षि गुप्ता द्वारा दी गई दलीलों में भी दम पाया कि उद्देश्य (कि आरोपी अपनी बेटी को अपने साथ रखना चाहता था) को बाद में पेश किया गया, जिससे आरोपी की एक भयावह इमेज को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जा सके जो यह दिखा सके कि वह क्रूर और बर्बरतापूर्ण काम करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इसके अलावा न्यायालय को पीडब्लू1 और पीडब्लू2 की गवाही में उनके द्वारा बताए गए तथ्यों के संबंध में अधिक सत्यता नहीं मिली। इसी तरह, पीडब्लू3 और पीडब्लू4 की गवाही भी अदालत ने खारिज कर दी। दीपचंद/मृतक के मृत्यु पूर्व दिए गए बयान के साक्ष्य के संबंध में न्यायालय ने उसमें (जैसा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था) जांच अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए बयान में कई भौतिक विरोधाभास पाए।
न्यायालय ने कहा, कि मजिस्ट्रेट को दिया गया मृत्यु पूर्व बयान हमें पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं लगता है, क्योंकि दीपचंद के टीवी देखने के लिए अपनी मां के कमरे में जाने और अन्य तथ्यों के संबंध में दिए गए तथ्यात्मक दावे का खंडन किया। अदालत ने यह पाते हुए कि मृत्यु पूर्व बयान के मूल्यांकन के संबंध में कानून को वर्तमान मामले के तथ्यों में सही ढंग से लागू नहीं किया गया, उसे संदेह का लाभ दिया और उसकी अपील को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि वह पहले ही 10 साल की सजा काट चुका है, इसलिए उसकी रिहाई का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
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