Home हाई कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिये कोई नियम न बनाने पर यूपी सरकार से जताई नाराजगी, कोर्ट ने कहा, राज्य बेहद लापरवाही अपना रहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिये कोई नियम न बनाने पर यूपी सरकार से जताई नाराजगी, कोर्ट ने कहा, राज्य बेहद लापरवाही अपना रहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिये कोई नियम न बनाने पर यूपी सरकार से जताई नाराजगी, कोर्ट ने कहा, राज्य बेहद लापरवाही अपना रहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को यूपी सरकार पर नाराजगी जताई है, यह नाराजगी सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (SRS) के लिये कोई नियम न बनाने और इसके लिए तीन माह का समय मांगने पर जताई है, साथ ही कहा है राज्य सरकार अभी भी मूकदर्शक बना हुआ है, जबकि केंद्र सरकार ने इस मामले में तत्काल कार्रवाई की थी। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिये तारीख दी है साथ ही यह बताने को कहा है कि सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (SRS) पर नियम बनाने के लिये अभी तक क्या किया गया है।

महिला सिपाही

कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला सिपाही अधिवक्ता ने बताया कि उसके मामले में अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इस पर कोर्ट ने अगली तारीख तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा याची के लंबित आवेदन पर उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा “एक महिला कांस्टेबल की याचिका पर पिछली सुनवाईके दौरान दो निर्देश दिये थे। उनमें से एक याची द्वारा लिंग परिवर्तन की मांग में दाखिल अर्जी के निस्तारण का था। दूसरा केंद्र सरकार द्वारा पारित अधिनियम और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में राज्य को सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के संदर्भ में नियम बनाने के लिये था। मगर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।

कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुपालन न करने पर नाराजगी जताई। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में जिस तरह तीन महीने का अतिरिक्त समय मांगा गया है, उससे पता चलता है कि राज्य फिर से बेहद लापरवाही भरा रवैया अपना रहा है। इस बात का कोई कारण भी नहीं बताया गया कि राज्य सरकार हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन महीने का समय क्यों चाहती है।

यूपी पुलिस

अदालत ने कहा कि मामले को 18 अक्टूबर को पुन: शीर्ष पर रखा जाये। उस तारीख को याची के मामले में सक्षम प्राधिकारी का निर्णय शपथ पत्र पर पेश किया जाए। साथ ही कोर्ट को यह भी बताया जाएगा कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में राज्य सरकार ने नियम बनाने के लिए क्या किया है। गौरतलब है कि पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने लिंग परिवर्तन कराने को संवैधानिक अधिकार बताते हुए पुलिस महानिदेशक को महिला कांस्टेबल द्वारा लिंग परिवर्तन कराने की मांग के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करने का निर्देश दिया है। साथ ही राज्य सरकार को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में केंद्रीय कानून के अनुरूप अधिनियम बनाने को कहा था।

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