
बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, यह याचिका विवादित परिसर हिंदुओं को सौंपे जाने और पूरी जमीन का अधिग्रहण कर ट्रस्ट बनाने और हिंदुओं को पूजा की छूट देने की मांग को को लेकर दायर की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश बोले, कोर्ट में दायर है डेढ़ दर्जन सिविल सूट
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसले में कहा,”कि तकरीबन डेढ़ दर्जन सिविल सूट ऐसी ही मांग को लेकर हाईकोर्ट में लंबित हैं, इसलिए इस मामले को खारिज किया जाता है। इसी टेक्निकल ग्राउंड पर जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया। बता दे कि इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने 4 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
2021 में खारिज हो गई थी याचिका, फिर की गई री-स्टोर
इस मामले की याचिका 19 जनवरी 2021 को भी खारिज की गई थी। हाईकोर्ट ने मार्च 2022 में इस जनहित याचिका को री स्टोर कर लिया था। हाईकोर्ट ने इसे सुनवाई के लिए दोबारा पेश किए जाने के निर्देश दिए थे, मगर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता वकील महक माहेश्वरी के मौजूद न होने की वजह से एक बार याचिका खारिज कर दी गई। याचिकाकर्ता वकील ने कहा था, “जिस जगह अभी मस्जिद है वहां द्वापर युग में कंस ने भगवान श्री कृष्ण के माता पिता को कैद कर रखा हुआ था।”

अधिवक्ता महक महेश्वरी ने 2020 में दायर की थी याचिका
बता दे कि जनहित याचिका 2020 में याचिकाकर्ता अधिवक्ता महक माहेश्वरी ने दायर की थी, जनहित याचिका में मुख्य रूप से यह कहा गया था, “कि कई ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज किया गया कि विचाराधीन स्थल वास्तव में कृष्ण जन्मभूमि है और यहां तक कि मथुरा का इतिहास रामायण काल से भी पहले का है। इस्लाम सिर्फ 1500 साल पहले आया है, याचिका में यह भी कहा गया कि इस्लामिक न्यायशास्त्र के अनुसार यह एक उचित मस्जिद नहीं है, क्योंकि जबरन भूमि पर कब्जा कर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। वहीं हिंदू न्यायशास्त्र के अनुसार, एक मंदिर एक मंदिर है, भले ही वह खंडहर क्यों न हो।
फैसले का अध्ययन करने के बाद लेगे आगे का फैसला
याचिकाकर्ता अधिवक्ता महक महेश्वरी का कहना है कि पूरा आदेश आने पर उसके अध्ययन के बाद आगे के लिये कोई फैसला करेंगे। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन को लेकर तकरीबन डेढ़ दर्जन सिविल सूट मथुरा की जिला अदालत में दाखिल किए गए थे। जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ माह पहले कहा था कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुये इन मुकदमों की सुनवाई अब मथुरा की जिला अदालत के बजाय सीधे तौर पर हाईकोर्ट में ही होगी। अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद की तर्ज पर इन मुकदमों की सुनवाई हाईकोर्ट में ही सीधे तौर पर किए जाने का फैसला किया गया था। हालांकि हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई है।