
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने यूपी के पूर्व मंत्री आजम खान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें आजम खान के बेटे स्वार सीट के पूर्व विधायक अब्दुला आजम को फर्जी जन्मतिथि मामले में आंशिक राहत देते हुए कोर्ट ने कहा, “फेयर ट्रायल अभियुक्त का मूल अधिकार है। इससे इनकार अभियुक्त व पीड़ित दोनों के साथ अन्याय है।” हालांकि कोर्ट ने आजम की कई मांगे मानने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत मेरिट पर याची की अर्जी तय करें, साथ ही कोर्ट ने अभियोजन के गवाह को बुलाने की अर्जी तय करने के निर्देश दिये है।
पूर्व मंत्री आजम खान ने याचिका दाखिल कर आरोप लगाकर कहा, “स्पेशल कोर्ट MP/MLA रामपुर में चल रहे मुकदमे में बचाव पक्ष को उचित अवसर नहीं दिया जा रहा। इसके बाद ट्रायल निष्पक्ष नहीं हो रहा है। याची की तरफ से ट्रायल कोर्ट के समक्ष कई प्रार्थना पत्र दिए गये, लेकिन सभी को खारिज कर दिया गया। बचाव पक्ष ने अभियोजन गवाह मोहम्मद शफीक की प्रेस कॉन्फ्रेंस की पेनड्राइव प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी थी। जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी प्रकार नामांकन पत्र भरने की प्रक्रिया का वीडियो प्रस्तुत करने की भी मांग की थी, साथ ही कई अन्य आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने और गवाहों की प्रति परीक्षा करने की मांग की थी। जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने नहीं माना।
राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि ट्रायल कोर्ट कानून के मुताबिक काम कर रही है। मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह जिस दस्तावेज को ट्रायल के लिए उचित समझे। उसे रखने की इजाजत दे या गैर जरूरी दस्तावेजों को प्रस्तुत करने से इनकार कर दें।
न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि बचाव पक्ष को साक्ष्य के तौर पर दस्तावेज प्रस्तुत करने का अधिकार है। मगर, यह ट्रायल कोर्ट का अधिकार है कि वह किसी दस्तावेज को केस के लिए आवश्यक समझती है या नहीं। हालांकि हाईकोर्ट ने यह माना कि अभियोजन के गवाह से प्रति परीक्षा करना बचाव पक्ष का अधिकार है। उसे यह अवसर मिलना चाहिए। इसी के साथ कोर्ट ने अभियोजन साक्षी मोहम्मद शफीक से बचाव पक्ष को प्रति परीक्षा का अवसर दिए जाने का ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है। जबकि अन्य मामलों में राहत देने से इनकार कर दिया।