इलाहाबाद उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) के न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने प्रथम अपील नंबर- 959/2023 पुष्पेंद्र सिंह बनाम श्रीमती सीमा के वैवाहिक विवाद से जुड़े एक मामले में कहा है कि अलग रह रही पत्नी को उसके जीवन और स्वतंत्रता को गरिमापूर्ण बनाए रखने के लिए दावे की तारीख से न्यूनतम राशि का भुगतान किया जाना चाहिए।
दो जजो की खंड पीठ ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, मथुरा द्वारा पारित आदेश, दिनांक 04.07.2023 को चुनौती के फैसले के खिलाफ दायर की गई अपील यह टिप्पणी की। दो जजो की खंड पीठ ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय मथुरा के आदेश के तहत पत्नी और बच्चों को दिए गये 7,000/-रुपये के अंतरिम भरण-पोषण को बरकरार रखा है।
प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय मथुरा के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत श्रीमती सीमा(पत्नी/प्रतिपक्षी) ने एक वाद पति पुष्पेंद्र सिंह (अपीलकर्ता/पति) के खिलाफ दायर किया था, जिसमें प्रतिपक्षी/ पत्नी और तीन बच्चों के जीवन और सम्मान को बनाये रखने के लिये भरण पोषण की मांग की थी, जिस पर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय ने प्रतिपक्षी/पत्नी को 2,500/- प्रति माह और दोनों पक्षों के बीच विवाह से पैदा हुए तीन बच्चों को 1,500/- प्रति माह, इस प्रकार दोनों पक्षों के बीच विवाह से पैदा हुए तीन बच्चों के जीवन और सम्मान को बनाए रखने के लिए भरण-पोषण के लिए 7,000/- प्रति माह का भरण-पोषण, पत्नी को एकमुश्त कानूनी खर्च के लिए 10,000/- रुपये देने का आदेश दिया।
प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय मथुरा के इस आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता/पति ने उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) में चुनौती दी। उसकी ओर से दलील दी गई कि अंतरिम गुजारा भत्ता बहुत ज्यादा है, जिसमें प्रतिपक्षी/पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया। अपीलकर्ता/पति के कहा कि उसकी प्रतिपक्षी/पत्नी का उसके सगे भाई के साथ संबंध था।
इस पर न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता दिसंबर 2014 से केंद्रीय अर्धसैनिक बल यानी आईटीबीपी में कार्यरत था, और उसे 40,032/- रुपए मासिक वेतन प्राप्त होता है। न्यायालय ने कहा कि पति के भाई के साथ व्यभिचार अंतरिम भरण-पोषण के आदेश को चुनौती देने के लिये पर्याप्त आधार नहीं है, जहां तक व्यभिचार का सवाल है, तलाक की कार्यवाही में उचित चरण में निचली अदालत द्वारा इस पर विचार किया जा सकता है, जो अभी भी लंबित है, साथ ही, अपीलकर्ता के लिए यह निर्विवाद है कि प्रतिपक्षी उसकी विवाहित पत्नी है और उनके विवाह से तीन बच्चे पैदा हुए हैं और इसके अलावा यह निर्विवाद है, प्रतिपक्षी के पास चार लोगों का सम्मानपूर्वक भरण-पोषण करने के लिए आय का स्वतंत्र स्रोत नहीं है। अपीलकर्ता और प्रतिपक्षी के बीच लंबित मुकदमे में, हम पाते हैं कि मामले के संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों के संदर्भ में दी गई राशि पूरी तरह से न्यूनतम है, क्योंकि पति के तीन बच्चे थे, जो अलग हो चुकी पत्नी के साथ रह रहे थे। जबकि उसके पास सम्मान के साथ चार जिंदगियां का गुजारा चलाने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं था।
न्यायालय ने माना है कि अलग रह रही पत्नी को न्यूनतम गरिमा के साथ अपने जीवन और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए दावे की तारीख से न्यूनतम राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि वर्तमान में अपीलकर्ता के विरूद्ध बकाया राशि के रूप में 1,26,000/- बकाया है। उस संबंध में, हमें लगता है कि संपूर्ण डिफ़ॉल्ट को चुकाने के लिए अपीलकर्ता को कुछ समय दिया जा सकता है।
जबकि एक स्तर पर, अपीलकर्ता के विद्वान वकील ने वर्तमान अपील को वापस लेने की मांग की थी, न्यायालय ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है क्योंकि मामले की सुनवाई हो चुकी थी। वही न्यायालय ने कहा कि इस स्तर पर रखरखाव राशि बढ़ाने का भी प्रस्ताव नहीं रखते हैं। साथ ही, इसका उचित अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उपाय लागू किए जाने चाहिए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि अगर पति न्यायालय की ओर से निर्धारित किश्तों में बकाया राशि का भुगतान करता है तो उसके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।न्यायालय ने कहा “अपीलकर्ता द्वारा पहले से जमा की गई किसी भी राशि को अपीलकर्ता द्वारा अंतिम किश्तों के लिए किए जाने वाले भुगतान में समायोजित किया जा सकता है।”
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