Wednesday, July 30, 2025
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हाईकोर्ट में ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ मंदिर जमीन विवाद पर फैसला टला, 12 सितंबर को होगी अगली सुनवाई, 25 जुलाई को न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने फैसला रख लिया था सुरक्षित

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इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचारधीन यूपी की बहुचर्चित वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर आने वाला फैसला सोमवार को टल गया है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के बाद केस की अगली तारीख 12 सितंबर निर्धारित कर दी है। काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की मूल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आना है।

ज्ञानवापी मस्जिद

25 जुलाई को न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने फैसला रख लिया था सुरक्षित

न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 25 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला को सुनाने के लिए 28 अगस्त सोमवार का दिन निश्चित किया गया था। काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में यह केस काफी महत्वपूर्ण रहा है। कोर्ट ने केस की पोषणीयता और एएसआई सर्वे से संबंधित मामलों की एक साथ सुनवाई की। विवाद में मूल मुकदमा अक्टूबर 1991 में दायर किया गया था। वाराणसी स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से अक्टूबर 1991 में एक केस दायर किया गया, इसमें दावा किया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण पुराने शिव मंदिर के ढांचे पर किया गया। पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा घोषित करने, परिसर क्षेत्र से मुसलमानों को हटाने और मस्जिद को ध्वस्तीकरण की मांग की गई। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद- ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने 1998 में हाईकोर्ट में मुकदमे की पोषणीयता को चुनौती दी। कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। यह रोक लगभग 20 वर्षों तक रही।

काशी विश्वनाथ मंदिर

20 साल रोक के बाद वर्ष 2020 में फिर गरमाया मामला, 

वर्ष 2020 में एक बार फिर यह मामला गरमाया। हाई कोर्ट की ओर से 20 वर्षों तक लगी मुकदमे की सुनवाई पर रोक को आगे नहीं बढ़ाए जाने के बाद हिंदू पक्षकारों ने वाराणसी कोर्ट का रुख किया। केस को फिर से खोलने की मांग की गई। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद इस केस में हाई कोर्ट चली गई। हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद मार्च 2020 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने 25 मई 2023 को अपने आदेश में कुछ स्पष्टीकरण के लिए मामले की फिर से सुनवाई शुरू की। इस केस से कई मामलों को जोड़ दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने 8 अप्रैल 2021 के वाराणसी कोर्ट के आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को ज्ञानवापी मस्जिद का व्यापक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने यह आदेश 2019  में दायर एक याचिका पर पारित किया था और सितंबर 2021 में हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4 के तहत चलने योग्य नहीं है। याचिका में कहा गया कि यह किसी भी मौजूदा पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में 15 अगस्त 1947 की स्थिति में परिवर्तन के संबंध में मुकदमा दायर करने या किसी अन्य कानूनी कार्यवाही पर रोक लगाता है। 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी धार्मिक स्थान के संबंध में कोई दावा नहीं किया जा सकता है। 1991 के अधिनियम के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थान की स्थिति को बदलने के लिए कोई राहत नहीं मांगी जा सकती है, क्योंकि वह 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में था। मंदिर पक्ष की ओर से दलील दी गई कि 1991 का यह अधिनियम उन पर लागू नहीं होगा। इसलिए मुकदमा चलने योग्य है। उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति ने याचिका दायर की थी।

मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर

सोमवार को मुख्य न्यायाधीश ने की सुनवाई

इस मामले की सुनवाई कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता एस.एफ.ए नकवी से कहा कि क्या आप मामलों को संक्षेप में समझा सकते हैं?  साथ ही, मुख्य न्यायाधीश ने अपर महाधिवक्ता महेश चन्द्र चतुर्वेदी से कहा कि इस मामले में राज्य सरकार का रुख स्पष्ट करें। इस पर अपर महाधिवक्ता ने कहा कि हम केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हैं। मुकदमा श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के बीच है। यह केस दो निजी पक्षों के बीच का है। इस केस में राज्य एक पक्ष नहीं है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यहां कोई राज्य एक पार्टी कैसे हो सकता है?

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर को अंजुमन इंतेजामिया कमेटी के वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए नकवी ने संक्षेप में जानकारी दी। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने पूंछा  कि क्या सभी मामलों में दलीलें पूरी हो चुकी हैं। अधिवक्ता की ओर से हां में जवाब दिया गया। वारिस्थ अधिवक्ता नकवी ने कहा कि आपके सामने जो मामले हैं, उनमें आज फैसला आना था। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति और मुख्य न्यायाधीश की ओर से पीठ के गठन मामले में दुविधा की स्थिति दिखती है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आपके अनुसार मुझे इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए? आप इस पर बहस कर सकते हैं। यह आपके अधिकार में है। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता नकवी ने कहा कि सिंगल जज की ओर से केस रिलीज का कोई आदेश नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि नियम यह है कि कोई मामला कुछ समय के अंतराल के बाद स्वचालित रूप से जारी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मुझे तथ्य समझाएं। अगर मैं मामले की सुनवाई नहीं कर सकता तो मैं इसे छोड़ दूंगा। इस पर अधिवक्ता ने केस और आंशिक सुनवाई की शक्ति पर बहस के लिए वर्ष 2006 के अमर सिंह केस की क्रिमिनल अपील का जिक्र किया। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आप मुख्य रूप से इस फैसले पर भरोसा कर रहे हैं? इस पर अधिवक्ता नकवी ने हां कहा।

विरोधी पक्ष को वरिष्ठ अधिवक्ता एस. एफ. ए नकवी की ओर दिए गए फैसले की प्रति मिलती है। मुख्य न्यायाधीश ने विरोधी पक्ष से फैसला को पढ़ने के लिए कहा। उन्होंने पूछा कि मामले में प्रस्ताव क्या है? इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता नकवी ने कहा कि यह आंशिक रूप से सुने गए मामलों के संबंध में है। यदि किसी मामले की आंशिक सुनवाई हुई है तो उसे उस पीठ के स्तर पर ही सुना जाना चाहिए। साथ ही, उन्होंने कहा कि आखिरकार मुख्य न्यायाधीश के पास ही रोस्टर तय करने का अधिकार होता है। इसके बाद उन्होंने फैसले की जांच के लिए स्थगन की मांग की।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मामले में 75 तारीखें तय हो चुकी हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने पूंछा कि यह कितने महीने से लंबित है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा- 20 महीने से। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने पूंछा कि हमें इसे आपकी प्रारंभिक आपत्ति के रूप में दर्ज करना चाहिए? इस पर नकवी झिझक गये। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आप स्वतंत्र रूप से बहस कर सकते हैं। अपने क्लाइंट के लिए आप दृढ़ रहिए। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मेरा निवेदन यह है, आपका आधिपत्य मेरे समर्पण को दर्ज कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा कि एक आपत्ति उठाई गई है, यह अदालत इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है, क्योंकि यह मामला एकल न्यायाधीश की अदालत से वापस ले लिया गया है।

मुख्य न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि एकल पीठ ने इस मामले की व्यापक सुनवाई की थी। फैसला 25 जुलाई 2023 को सुरक्षित रख लिया गया था। इसे आज सुनाया जाना था। आपराधिक अपील 4922/2006 में इस अदालत की एक बड़ी पीठ के फैसले पर भरोसा करती है। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि 75 तारीखों की सुनवाई के बाद मामले में फैसला आना था। अधिवक्ता का कहना है कि अगर कोर्ट नहीं बदलती तो केस में आदेश पारित कर दिया जाता। अधिवक्ता ने इस केस में समय देने वाले न्यायमूर्ति के स्तर पर ही फैसला सुनाए जाने की मांग की है।

मुख्य न्यायाधीश ने विपक्षी पक्ष की ओर से कहा कि विस्तृत बहस के बाद भी फैसला नहीं सुनाया गया तो मुख्य न्यायाधीश मामले को वापस ले सकते हैं। यह भी स्थापित कानून है कि मुख्य न्यायाधीश ही रोस्टर के मास्टर हैं। वह तय कर सकता है कि कौन सी बेंच सुनवाई करेगी।

मुख्य न्यायाधीश ने पूंछा, क्या ने मध्यस्थता को लेकर किया गया प्रयास?

मुख्य न्यायाधीश ने ज्ञानवापी प्रकरण में मध्यस्थता को लेकर भी सवाल किया। उन्होंने अधिवक्ताओं से पूंछा कि क्या मध्यस्थता के लिए कोई प्रयास किया जा रहा है? विपक्षी पक्ष के अधिवक्ता ने इस पर कहा कि मध्यस्थता के लिए कोई प्रयास नहीं चल रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि विवादित स्थल (वर्तमान ज्ञानवापी मस्जिद स्थल) में कौन प्रवेश कर सकता है? इस पर अधिवक्ता नकवी ने कहा कि हम कर सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, हम कौन हैं? क्या आपका मतलब मुसलमानों से है? इस पर नकवी ने कहा कि हां। हिंदू वहां प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैं केवल आपसे जानकारी मांग रहा हूं, क्योंकि मथुरा के मामले भी सामने आ रहे हैं।

अधिवक्ता नकवी ने इस पर कहा कि विवादित स्थल पर कोई भी प्रवेश कर सकता है, जब तक कि वे मस्जिद की पवित्रता बनाए रखें। इस पर मुख्य न्यायाधीश पूंछा केस केवल हिंदुओं की ओर से दायर किया गया है? इस पर नकवी ने हां में जवाब दिया। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि किस बात ने उन्हें मुकदमा दायर करने के लिए प्रेरित किया? इस पर अधिवक्ता ने कहा कि वे चाहते थे कि मस्जिद सहित पूरा परिसर उन्हें सौंप दिया जाए।

अंजुमन इंतेजामिया कमेटी के अधिवक्ता के जवाब पर आदि विश्वेश्वर के वकील ने कहा कि हमें मस्जिद के अंदर मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति नहीं है। इस पर अधिवक्ता नकवी ने बताया कि कैसे काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट और मस्जिद कमेटी के बीच जमीन की अदला-बदली हुई है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई को खत्म कर दिया। अगली तारीख 12 सितंबर निर्धारित कर दी। इस दिन टाइटल केस में कोर्ट फैसला सुना सकती है।

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