Thursday, July 31, 2025
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी के भरण पोषण की याचिका की खारिज, फैमिली कोर्ट के आदेश को रखा बरकरार, कोर्ट ने कहा, पढ़ी लिखी महिला के पास कमाई करने की क्षमता

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दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने हाल ही में पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दायर भरण पोषण की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया, कि अपीलकर्ता अत्याधिक योग्य है और उसके पास कमाई करने की क्षमता है, बल्कि वास्तव में वह कमाई कर रही है, हालांकि वह अपनी वास्तविक आय की सच्चाई का खुलासा करने के लिये इच्छुक नहीं है, ऐसे व्यक्ति को भरण-पोषण का हकदार नहीं ठहराया जा सकता। इसलिये हम अपील में कोई योग्यता नहीं पाते हैं, जिसे खारिज किया जाता है।

दिल्ली हाईकोर्ट में अपीलकर्ता/पत्नी ने प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय के दिनांक 03.09.2019 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसको प्रधान न्यायाधीश पारिवारिक न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत भरण-पोषण के तहत उसके आवेदन को खारिज कर दिया था।

यह था मामला

अपीलकर्ता/पत्नी ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की, जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने की। इस दौरान याचिका के अधिवक्ता ओम प्रकाश गुलबानी ने कोर्ट को बताया कि अपीलकर्ता ने 21 अप्रैल 2014 को प्रतिवादी/पति से शादी की थी, लेकिन असंगतता और मतभेदों के कारण वह अपने वैवाहिक रिश्ते को जारी रखने में सक्षम नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी/पति द्वारा धारा 13(1) के तहत तलाक की याचिका दायर की। अपीलकर्ता तब तक काम कर रही थी, लेकिन तलाक की याचिका दायर करने के बाद उसने 22/05/2015 को अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद मामला सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया और तलाक की याचिका पति द्वारा 06 फरवरी 2016 को वापस ले ली थी, जिसके बाद अपीलकर्ता/पत्नी ने 06 मई 2016 को पुलिस थाने में शिकायत दर्ज की गई थी।, जिससे पता चलता है कि दोनों पक्ष अपने वैवाहिक रिश्ते में समझौता करने में असमर्थ थे।

पति ने धारा 13 (1) (IA) के तहत तलाक याचिका की दायर

अपीलकर्ता/पत्नी द्वारा प्रतिवादी/पति के खिलाफ पुलिस थाने में की गई शिकायत के बाद प्रतिवादी/पति ने 24 मई 2016 को अपीलकर्ता के खिलाफ हिन्दू विवाह अधिनियम (HMA) 1955 की धारा 13 (1) (IA) के तहत दूसरी तलाक याचिका दायर की, मुकदमे के दौरान अपीलकर्ता ने हिन्दू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसे फैमिली कोर्ट ने दिनांक 08 अगस्त 2018 के आदेश द्वारा खारिज कर दिया।

फैमिली कोर्ट ने मेरिट के आधार पर खारिज किया था वाद

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ओम प्रकाश गुलबानी ने बताया, “अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की और कोर्ट ने दिनांक 28 मार्च 2019 को आदेश देकर मामले को पुनः निर्णय के लिये वापस भेज दिया। प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय ने मामले पर नये सिरे से विचार किया और अपीलकर्ता की योग्यता और यह भी देखते हुये कि वह शादी के बाद भी काम कर रही थी, दिनांक 03 सितंबर 2019 के आदेश के तहत उसे कोई भी लंबित गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया।

पत्नी ने हाईकोर्ट में दायर की अपील

अपीलकर्ता/पत्नी ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की, जिसने 55,000/- रुपये के मुकदमेबाजी खर्च के अलावा 35,000/- रुपये प्रति माह की दर से अंतरिम रखरखाव की मांग की। जिस पर न्यायालय ने याचिकाकर्ता के विद्धान अधिवक्ता को सुना और अपना फैसला सुनाया।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा

“इसमें कोई विवाद नहीं है कि अपीलकर्ता अपनी शादी के समय एम.फिल थी और पीएचडी कर रही थी, जिसे उसने पूरा कर लिया है और अब उसके पास कंप्यूटर में पेशेवर योग्यता के साथ पीएचडी (प्रबंधन) की योग्यता है। जबकि दूसरी ओर प्रतिवादी एक साधारण स्नातक है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अपीलकर्ता यहां काम कर रहा था। उसकी शादी के समय वह एक डायमंड ज्वेलरी शोरूम में थी और उसे 12,000/- रुपये प्रतिमाह मिलते थे। 22 मई 2015 को उसने अपनी नौकरी छोड़ दी थी। दलीलों से यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता न केवल अत्यधिक योग्य है, बल्कि अपनी शादी के समय भी काम कर रही थी।”

प्रतिवादी ने दावा किया अपीलकर्ता बेरोजगार नहीं

कोर्ट ने कहा, “महत्व का दूसरा पहलू यह है, “प्रतिवादी ने दावा किया था कि अपीलकर्ता सांसद के कार्यालय में कार्यरत है, वह बेरोजगार नहीं है यह दावा गलत है, दावे के समर्थन में उन्होंने एक सीडी पर भरोसा किया था, जिसमें अपीलकर्ता सांसद के कार्यालय में काम करते हुये और रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज करते हुए दिखाया गया था। अपीलकर्ता, जिसने शुरू में यह रुख अपनाया था कि वह काम नहीं कर रही है, जब इस सीडी के साथ सामना किया गया, तो उसने स्पष्टीकरण दिया कि उसका एक दोस्त सांसद के कार्यालय में काम करता है और कभी-कभी जब वह अपने दोस्त से मिलने जाती है, तो वह भी ऑफिस में काम देख लेती है।

अपीलकर्ता बताने में रही असफल

कोर्ट ने कहा, “ विद्वान प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय ने ठीक ही कहा है कि अपीलकर्ता शुरू में यह खुलासा करने में विफल रही थी कि वह काम कर रही थी, भले ही नियमित रूप से या दान के लिये नहीं, जैसा कि उसने दावा किया था। वह इनमें से किसी भी तथ्य का खुलासा करने में विफल रही थी और धारा 151 सीपीसी और सीडी के तहत आवेदन दाखिल करने के बाद उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था। पारिवारिक न्यायालय के विद्वान प्रधान न्यायाधीश द्वारा यह भी कहा गया कि यह स्वीकार करना कठिन है कि जो व्यक्ति इतना योग्य है वह काम नहीं करेगा और यह स्वीकार करना और भी कठिन है कि वह दान के लिए काम कर रही होगी”।

हाईकोर्ट ने फेमली कोर्ट के आदेश का किया समर्थन

कोर्ट ने कहा, “जैसा कि ऊपर बताया गया है, हम विद्वान प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्षों से सहमत हैं कि अपीलकर्ता न केवल एक उच्च योग्य महिला है, बल्कि अपनी शादी के समय और उसके बाद भी काम कर रही है। अपीलकर्ता द्वारा दिये गये दस्तावेजों और स्वीकारोक्ति से स्पष्ट रूप से एक अनूठा निष्कर्ष निकलता है कि वह सांसद के कार्यालय में कार्यरत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि केवल इसलिये कि कोई व्यक्ति योग्य है, उसे काम करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए, लेकिन यहां एक मामला है जहां योग्य होने के अलावा, अपीलकर्ता काम भी कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि “क्षमता” और “वास्तविक कमाई” के बीच अंतर है, लेकिन यहां यह ऐसा मामला नहीं है जहां अपीलकर्ता के पास केवल क्षमता थी, बल्कि रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेज़ स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वह काम भी कर रही है।

कोर्ट ने “ममता जयसवाल बनाम राजेश जयसवाल” के मामले का किया जिक्र

कोर्ट ने, “ममता जयसवाल बनाम राजेश जयसवाल 2000 (3) एमपीएलजे 100 के मामले में भी इसी तरह के तथ्यों पर विचार किया गया था, जिसमें पाया गया कि धारा 24 पति या पत्नी में से किसी एक को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित की गई है, जो खुद का समर्थन करने में असमर्थ है। या स्वयं ईमानदार प्रयासों के बावजूद”। हालाँकि, कानून यह उम्मीद नहीं करता है कि कानूनी लड़ाई में लगे लोग केवल विपरीत पक्ष से पैसा निचोड़ने के उद्देश्य से निष्क्रिय बने रहेंगे। एचएमए की धारा 24 का उद्देश्य निष्क्रिय लोगों की एक सेना बनाना नहीं है जो दूसरे पति या पत्नी द्वारा दी जाने वाली सहायता की प्रतीक्षा कर रहे हों। उक्त मामले में यह पाते हुए कि महिला बहुत योग्य थी, किसी भी तरह का भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने इसी तरह, रूपाली गुप्ता बनाम रजत गुप्ता 2016 (234) डीएलटी 693 के मामले का जिक्र करते हुये कहा, “इस न्यायालय की डिवीजन बेंच ने कमाई की क्षमता रखने वाले एक योग्य पति या पत्नी द्वारा एचएमए की धारा 24 के तहत रखरखाव के दावे को खारिज कर दिया।

आवेदन को कोर्ट ने किया खारिज

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा, “हम पाते हैं कि वर्तमान मामले में न केवल अपीलकर्ता अत्यधिक योग्य है और उसके पास कमाई करने की क्षमता है, बल्कि वास्तव में वह कमाई कर रही है, हालांकि वह अपनी वास्तविक आय का सच्चाई से खुलासा करने के लिए इच्छुक नहीं है। ऐसे व्यक्ति को भरण-पोषण का हकदार नहीं ठहराया जा सकता। प्रासंगिक रूप से, घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपीलकर्ता द्वारा भरण-पोषण के दावे का भी यही हश्र हुआ है और उसे भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया है। इसलिए, हम अपील में कोई योग्यता नहीं पाते हैं जिसे खारिज कर दिया गया है, लंबित आवेदन का भी तदनुसार निपटारा किया जाता है।

कोर्ट के आदेश की प्रति यहाँ से प्राप्त करें

12-Sep-2013-judgement

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