सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति सरसा वेंकटनारायण भट्टी की खंडपीठ ने आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के द्वारा दायर की गई विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 14510/2023 संजय सिंह बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में सुनवाई करते हुये शराब घोटाले में की गई गिरफ्तारी के मामले में प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया,संजय सिंह की गिरफ्तारी रद्द करने से इनकार करने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुये दिया है।
आप सांसद की ओर से वरिष्ठ अधविकता सिंघवी ने रखा पक्ष
सुप्रीम कोर्ट में आप सांसद संजय सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुये वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संजय की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया और तर्क दिया कि यह शुरू से ही अमान्य है। उन्होंने तर्क दिया कि एक्ट की धारा 19, जो मनी-लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून के तहत वैध और वैध गिरफ्तारी के लिए आवश्यकताओं को निर्धारित करती है, शक्ति के मनमाने उपयोग के खिलाफ अंतर्निहित सुरक्षा उपाय प्रदान करती है। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में व्यक्ति की संलिप्तता के संबंध में विश्वास के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने और गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को उनकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने का आदेश शामिल है।
इस पर सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा, कि हाईकोर्ट के निष्कर्ष के अनुसार, संजय सिंह को छह पन्नों में गिरफ्तारी का आधार दिया गया था। इस पर संजय सिंह वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह “पूरी तरह से अलग मामला” है। एक्ट की धारा 19 में चार शब्दों का वैधानिक ट्रायल यहां पूरा नहीं हुआ है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा, “कृपया इन चार वाक्यांशों पर ध्यान दें, ‘विश्वास करने का कारण’, ‘सामग्री का आधार’, ‘दोषी’ और ‘गिरफ्तार किया जा सकता है’। अपराध की डिग्री आवश्यक है।” इस पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने प्रतिवाद किया कि “एक्ट की धारा 19 की भाषा कुछ हद तक अस्पष्ट है। उस स्तर पर अपराध की घोषणा नहीं की जा सकती।
नोटिस जारी करने को कोर्ट हुयी सहमत
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा दिये गए तर्क को सुनते हुये न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ नोटिस जारी करने पर सहमत हो गई, लेकिन न्यायाधीश ने विधायक को नियमित जमानत के लिए आवेदन दायर करने की सलाह देते हुए कहा, “दो पहलू हैं: मुझे नहीं लगता कि जमानत के लिए आवेदन उन्हें सुप्रीम कोर्ट में आने के अधिकार से वंचित करेगा। यह पीएमएलए एक्ट की धारा 19 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167(2) का उल्लंघन है। साथ ही, मेरी समझ यह है कि जहां तक सीआरपीसी की धारा 167(2) का सवाल है, क्षेत्राधिकार संकीर्ण है। जमानत क्षेत्राधिकार बहुत व्यापक है। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ”इस स्तर पर जमानत ही एकमात्र उचित उपाय नहीं है।” आख़िरकार, पीठ ने फैसला सुनाया, “जारी नोटिस 11 दिसंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में वापस किया जा सकता है। दस्ती सहित सभी माध्यमों से नोटिस दिया जाएगा। इस बीच याचिकाकर्ता नियमित जमानत के लिए आवेदन दायर करने के लिए खुला होगा, यदि सलाह दी गई हो। यदि नियमित जमानत के लिए कोई आवेदन है दायर किया गया है, उस पर अपने गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा, बिना उस निर्णय पर आपत्ति किए, जो इस अदालत के समक्ष विचाराधीन है।