Home दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर 16 वें दिन सुनवाई हुई पूरी, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर 16 वें दिन सुनवाई हुई पूरी, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर 16 वें दिन सुनवाई हुई पूरी, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
आर्टिकल 370 पर सुनवाई के दौरान का दृश्य

 

उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट )में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के मामले में सुनवाई पूरी कर ली है, और लंबित मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। जिसमें याचिकाकार्ताओं ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को भी चुनौती दी, जिसने राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। इस मामले में 16 दिनों तक याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से दलीलें पेश की गई।

मार्च 2020 में दर्ज हुई थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 पर जुड़ी याचिका दायर की गई थी, इसकी आखिरी लिस्टिंग मार्च 2020 में हुई थी। 2 अगस्त 2023 से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में सुनवाई शुरू हुई थी, सोलह दिनों तक इस पर खूब बहस और चर्चा हुई।

9 दिनों तक याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने की बहस

याचिकाकर्ता के ओर से नौ दिनों तक वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अधिवक्ता राजीव धवन, अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम, अधिवक्ता जफर शाह ने बहस की और भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के संबंधों की अनूठी प्रकृति पर जोर दिया, इसके अलावा उन्होने अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का फैसला खारिज करने की मांग की, याचिकाकार्ताओं के अधिवक्ताओं ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय विशेष परिस्थितियों में हुआ था, इसलिए, उसे अलग दर्जा मिला। राज्य की एक अलग संविधान सभा थी, जिसका काम 1957 में पूरा हो गया।  भारत के संविधान से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से ही हो सकता था, इसलिए, संसद का फैसला कानूनन गलत है और इस बात पर जिक्र किया कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने भारत के डोमिनियन को आंतरिक संप्रभुता नहीं छोड़ी थी। इस प्रकार, जबकि विलय पत्र (आईओए) के अनुसार विदेशी मामलों, संचार और रक्षा से संबंधित कानून बनाने की शक्ति संघ के पास थी, जम्मू-कश्मीर की आंतरिक संप्रभुता जो उसे अन्य सभी मामलों पर कानून बनाने की शक्तियां प्रदान करती थी, उसके पास ही रही। यह तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 370 ने स्थायित्व ले लिया है और 1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के विघटन के बाद यह ‘अस्थायी’ प्रावधान नहीं रह गया है।

6 दिन तक केंद्र ने रखा अपना पक्ष

वही केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जिरह की, इसके अलावा कई संगठनों ने भी केंद्र के फैसले के समर्थन में 6 दिन तक अपना पक्ष रखा। ऐसे संगठनों के लिये वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और महेश जेठमलानी पेश हुये। केंद्र ने पीठ को बताया कि अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का फैसला राष्ट्रहित के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए भी लिया गया था, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने राष्ट्र की अखंडता के पहलू पर ज़ोर दिया। वही सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि पुरानी व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35-A भी लागू था, इसके चलते राज्य में बसे लोगों की एक बड़ी संख्या को दूसरे नागरिकों जैसे अधिकार नहीं उपलब्ध थे। वह संपत्ति नहीं खरीद सकते थे, मतदान भी नहीं कर सकते थे, अब सभी के अधिकार समान हो गए है।

सुनवाई करती संवैधानिक पीठ

पीठ याचिकाकर्ताओं के पक्ष की दलील से नहीं हुई सहमत

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अध्यक्षता वाली पीठ याचिकाकर्ता पक्ष की दलील से सहमत नज़र नहीं आये, उन्होंने कहा कि 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा खत्म हो गई, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि सिर्फ इस वजह से अनुच्छेद 370 को स्थायी मान लिया जाये।

मुख्य न्यायाधीश ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, “यह सही है कि राज्य के कुछ विषयों पर संसद कानून नहीं बना सकता था, लेकिन इससे भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के संबंध पर कोई असर नहीं पड़ता. भारत में विलय का मतलब ही यही था कि जम्मू-कश्मीर ने अपनी संप्रभुता भारत को सौंप दी.”

 

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here