उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में मंगलवार को 12वें दिन भी जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म करने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी, जिसमें याचिकाकर्ताओं और सरकार की तरफ से अपने अपने पक्ष रखे गए। इस दौरान केंद्र के तरफ से सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि जम्मू-कश्मीर को दो अलग यूनियन टेरिटरी (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांटने का कदम अस्थायी है, लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा, मगर जल्दी ही जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य बना दिया जायेगा।

इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह राष्ट्रीय हित में जम्मू-कश्मीर को दो अलग यूनियन टेरिटरी में बांटने के केंद्र के फैसले को स्वीकृति देने की इच्छुक है। न्यायालय ने केंद्र से सवाल किया कि जम्मू-कश्मीर को यूनियन टेरिटरी बनाने का कदम कितना अस्थायी है? और उसे वापस राज्य का दर्जा देने के लिये, क्या समय सीमा सोच रखी है,? इसकी जानकारी दें, आप चुनाव कब कराने जा रहे हैं?”
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ, जम्मू-कश्मीर को एक राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के मुद्दे पर सक्रिय रूप से विचार-विमर्श कर रही है, 5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के तहत जिसका दर्जा समाप्त कर दिया गया था।
भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले मेन जवाब दिया कि वह इस मामले पर निर्देश मांगेंगे, यह दोहराते हुए कि राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया पहले से ही प्रगति पर है। मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर भी विचार किया कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के बदले में यूनियन के लिए किसी राज्य को अस्थायी अवधि के लिए केंद्र शासित प्रदेश में बदलना संभव है। हालांकि, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे परिदृश्य में, सरकार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक बयान देना होगा कि एक यूटी को एक राज्य में वापस लाना होगा, मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “यह स्थायी रूप से यूनियन टेरिटरी नहीं हो सकता।” इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने फिर से पुष्टि की, कि सरकार का रुख इस दृष्टिकोण के अनुरूप था, जैसा कि संसदीय बयान में दर्शाया गया है।
जम्मू-कश्मीर में कब तक लोकतंत्र की बहाली होगी?
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं की प्रासंगिकता को स्वीकार किया, लेकिन क्षेत्र में लोकतंत्र बहाल करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। जिस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने टिप्पणी की, “हम समझते हैं कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले हैं, राष्ट्र का संरक्षण ही सर्वोपरि चिंता का विषय है। लेकिन आपको बिना किसी बाध्यता में डाले, आप और एजी उच्चतम स्तर पर यह निर्देश मांग सकते हैं कि- क्या कोई समय सीमा ध्यान में रखी गई है? “ मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को समझा गया है, लेकिन क्षेत्र में लोकतंत्र की बहाली भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, ”समान रूप से, लोकतंत्र की बहाली भी महत्वपूर्ण है।”