Home महाराष्ट्र सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र के शिवसेना विधायकों की आयोग्यता पर हुई सुनवाई, कोर्ट का महाराष्ट्र के स्पीकर को निर्देश, समय सीमा करे तय

सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र के शिवसेना विधायकों की आयोग्यता पर हुई सुनवाई, कोर्ट का महाराष्ट्र के स्पीकर को निर्देश, समय सीमा करे तय

सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र के शिवसेना विधायकों की आयोग्यता पर हुई सुनवाई, कोर्ट का महाराष्ट्र के स्पीकर को निर्देश, समय सीमा करे तय
महाराष्ट्र के बागी शिवसेना विधायकों पर हुई सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सोमवार को उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने शिवसेना (उद्धव ठाकरे) पार्टी के सांसद सुनील प्रभु द्वारा दायर याचिका शिवसेना (शिंदे गुट) के 16 विधायकों की अयोग्यता पर सुनवाई की। जिसमें पीठ ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में की गई देरी पर अस्वीकृति व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को अनिश्चित काल तक विलंबित नहीं कर सकते और कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिये इसकी समय सीमा तय करनी होगी। इसके बाद मामले की सुनवाई दो हफ्ते के लिए स्थगित कर दी गई, साथ ही कोर्ट ने शिवसेना के नाम और सिंबल से जुड़े मामले की सुनवाई 3 हफ्ते के लिए स्थगित कर दी है।

जून 2022 में शिन्दे ने शिवसेना से की थी बगावत

शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने जून 2022 में पार्टी से बगावत की थी। इसके बाद शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई और खुद मुख्यमंत्री बन गये थे। इसके बाद शिंदे ने शिवसेना पर अपना दावा कर दिया। 16 फरवरी 2023 को चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना मान लिया था, साथ ही शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चिन्ह तीर-कमान को इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी। उद्धव गुट ने चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। एकनाथ शिंदे गुट के 16 बागी विधायकों की अयोग्यता पर सुप्रीम कोर्ट ने करीब 4 महीने पहले फैसला सुनाया था। इसमें कोर्ट ने बागी विधायकों की सदस्यता पर फैसला स्पीकर पर छोड़ दिया था।

56 विधायकों की आयोग्यता के लिये 34 याचिकायें लम्बित

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुये कहा, “56 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर कुल चौंतीस याचिकाएं लंबित हैं। पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाओं को एक सप्ताह की अवधि के भीतर स्पीकर के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये, जिस पर स्पीकर को रिकॉर्ड पूरा करने और सुनवाई के लिए समय निर्धारित करने के लिए प्रक्रियात्मक निर्देश जारी करना होगा।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का  प्रतिनिधित्व कर रहे भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “मिस्टर एसजी, उन्हें निर्णय लेना है। वह निर्णय में देरी नहीं कर सकते।” भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस वर्ष संविधान पीठ द्वारा दिये गये फैसले का जिक्र करते हुये पूंछा, “कोर्ट के 11 मई के फैसले के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने क्या किया?, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष को “उचित अवधि” के भीतर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने का निर्देश दिया गया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होते हुये कहा कि 11 मई के फैसले के बाद स्पीकर को कई अभ्यावेदन भेजे गए थे। चूंकि कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए वर्तमान रिट याचिका 4 जुलाई को दायर की गई और 14 जुलाई को नोटिस जारी किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि स्पीकर ने उसके बाद भी कुछ नहीं किया। जब याचिका को 18 सितंबर को सूचीबद्ध करने के लिए दिखाया गया तो स्पीकर ने मामले को 14 सितंबर को सूचीबद्ध किया, जिस तारीख पर उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने एनेक्चर दाखिल नहीं किए हैं।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने प्रक्रिया को बताया तमाशा

वही सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने बिना कोई विशेष तारीख बताए मामले को “उचित समय” पर सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि शिंदे गुट के विधायकों ने सैकड़ों पन्नों का जवाब दाखिल किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने पूरी प्रक्रिया को “तमाशा” करार देते हुये सुप्रीम कोर्ट से स्पीकर को विशिष्ट निर्देश जारी करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत किसी मामले का निर्णय करते समय एक न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करता है और सुप्रीम कोर्ट एक न्यायाधिकरण को परमादेश जारी कर सकता है। उन्होंने इसका भी जिक्र किया न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन द्वारा लिखित निर्णय, जिसमें दसवीं अनुसूची के तहत मामले पर निर्णय लेने के लिए स्पीकर के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की गई थी।

एसजी ने जताई आपत्ति

सोलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल की दलीलों पर यह कहकर आपत्ति जताई कि वह एक संवैधानिक प्राधिकार का “उपहास” कर रहे हैं। एसजी ने कहा, “आइए एक बात न भूलें- स्पीकर एक संवैधानिक पदाधिकारी हैं। हम अन्य संवैधानिक निकाय के सामने उनका उपहास नहीं उड़ा सकते। हो सकता है कि हम उन्हें पसंद न करें लेकिन हम इससे इस तरह नहीं निपटते हैं।”

सीजेआई ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ भी नहीं हुआ है। सीजेआई ने कहा,”आप यह नहीं कह सकते कि मैं इसे उचित समय पर सुनूंगा। आपको तारीखें देते रहना होगा।” एसजी ने तब पूछा कि क्या कोई स्पीकर अपने दिन-प्रतिदिन के कामकाज का विवरण अदालत को सौंप सकता है। जवाब में सीजेआई ने कहा, “वह दसवीं अनुसूची के तहत एक न्यायाधिकरण है। एक न्यायाधिकरण के रूप में वह इस अदालत के अधिकार क्षेत्र के तहत उत्तरदायी है। स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का पालन करना होगा। 11 मई- महीने बीत गए और केवल नोटिस जारी कर दिया गया है।”

शिन्दे पक्ष के अधिवक्ताओं ने देरी के लिये उद्धव गुट को ठहराया दोषी

शिंदे पक्ष की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल और महेश जेठमलानी ने देरी के लिए उद्धव समूह को दोषी ठहराया क्योंकि वे समय पर दस्तावेज दाखिल करने में विफल रहे। सिब्बल ने कहा कि प्रक्रिया के नियमों के अनुसार एनेक्चर उपलब्ध कराना स्पीकर का काम है। उन्होंने तर्क दिया कि शिंदे पक्ष ने अपने जवाबों में कभी भी इस बात पर आपत्ति नहीं जताई कि एनेक्चर की आपूर्ति कभी नहीं की गई। अंततः, पीठ ने कार्यवाही के समापन के लिए एक निश्चित समयसीमा की मांग करते हुए मामले को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया। सीजेआई ने कहा, “हम इसे दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करेंगे। हमें बताएं कि मामला कैसे आगे बढ़ रहा है। यह मामला अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता।”

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