राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शनिवार को राजस्थान उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) के न्यायमूर्ति एमएम श्रीवास्तव व न्यामूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने अधिवक्ता शिवचरण गुप्ता की जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) पर नोटिस जारी किया है और इस पर 3 अक्टूबर तक नोटिस का जवाब मांगा है। यह नोटिस उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) ने मुख्यमंत्री के उस बयान पर दिया है, जिसमें उन्होंने 31 अगस्त को जयपुर में कहा था कि आज ज्यूडिशियरी में भयंकर भ्रष्टाचार हो रहा है। मैंने सुना है कि कई अधिवक्ता तो जजमेंट लिखकर ले जाते हैं और वही जजमेंट कोर्ट में आता है।
अधिवक्ता शिवचरण ने दाखिल की पीआईएल
मुख्यमंत्री के इस बयान पर अधिवक्ता शिवचरण गुप्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी, खंडपीठ के समक्ष प्रार्थी ने कहा कि सीएम गहलोत ने व्यक्ति विशेष की बजाय न्यायपालिका पर करप्शन का आरोप लगाया है। उनका बयान पूरी न्यायपालिका को कठघरे में खड़े करने जैसा है। सीएम ने अदालत की आपराधिक अवमानना की है, इसलिए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लिया जाये, इसलिए हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत प्रसंज्ञान लेकर अवमाननाकर्ता को दंडित करे।
मुख्यमंत्री ने दी सफाई

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के बयान पर विवाद होने के बाद उन्होंने सफाई देते हुये X पर ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा “मैंने ज्यूडिशियरी के करप्शन को लेकर जो कहा वो मेरी निजी राय नहीं है। मैंने हमेशा ज्यूडिशियरी का सम्मान और उस पर विश्वास किया है। समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) के अनेकों रिटायर्ड न्यायाधीशों और रिटायर्ड चीफ जस्टिस तक ने ज्यूडिशियरी में भ्रष्टाचार पर टिप्पणियां की हैं, उस पर चिंता व्यक्त की है।”
मेरा न्यायपालिका पर इतना विश्वास है कि मुख्यमंत्री के रूप में जजों की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट कॉलेजियम के जो नाम हमारे पास टिप्पणी के लिए आते हैं, मैंने उन पर भी कभी कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। मेरा स्पष्ट मानना है कि हर व्यक्ति को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए और ज्यूडिशियरी पर विश्वास करना चाहिए। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा।