26 जुलाई 2023 को W.P (C) 11016/2017 & CM APPL.20712022 अन्वेषा देब बनाम दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें उन्होंने गर्भवती कामकाजी महिलाओं के मामले में सुनवाई करते हुये कहा कि ऐसी महिलाएं मातृत्व लाभ की हकदार हैं और उनके रोजगार की प्रकृति के कारण उन्हें मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत राहत से वंचित नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय ने कहा कि मातृत्व लाभ केवल नियोक्ता और कर्मचारी के बीच वैधानिक अधिकार या संविदात्मक संबंध से उत्पन्न नहीं होता है, बल्कि यह उस महिला की पहचान का एक मौलिक और अभिन्न अंग है, जो परिवार शुरू करने और एक बच्चे को जन्म देने का विकल्प चुनती है।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि अगर आज के युग में, एक महिला को अपने पारिवारिक जीवन और करियर में प्रगति के बीच चयन करने के लिये कहा जाता है, तो उसे पेशेवर जीवन और व्यक्तिगत जीवन में आगे बढ़ने के साधन प्रदान न करके हम एक समाज के रूप में विफल होत हैं। न्यायालय ने दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ संविदा पर रोजगार प्राप्त एक गर्भवती महिला को राहत देते हुए ये टिप्पणियां की, जो नियमित महिला कर्मचारियों पर लागू होने वाले लगातार मातृत्व लाभ की मांग कर रही थी।
न्यायालय ने कहा कि बच्चे को जन्म देने की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, जो देश का संविधान अपने नागरिकों को अनुच्छेद 21 के तहत देता है। इसके अलावा, बच्चे को जन्म देने का विकल्प इस मौलिक अधिकार का विस्तार है। हालांकि, किसी प्रक्रिया या कानून के हस्तक्षेप के बिना किसी महिला द्वारा इस अधिकार के प्रयोग में बाधा डालना न केवल संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
मातृत्व लाभ के लिए उसके अनुरोध को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि कानूनी सेवा प्राधिकरणों के लिए मातृत्व लाभ देने का कोई प्रावधान नहीं था। न्यायमूर्ति श्री सिंह ने कहा कि जबकि डीएसएलएसए ने स्वीकार किया कि वह अपने स्थायी या नियमित कर्मचारियों को मातृत्व लाभ अधिनियम से उत्पन्न लाभ प्रदान करता है, वह संविदा कर्मचारियों को ऐसे लाभों से वंचित कर रहा है। यह देखते हुए कि प्राधिकरण को याचिकाकर्ता को मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत अन्य समान स्थिति वाले कर्मचारियों के समान लाभ और राहतें बढ़ानी चाहिए थीं, अदालत ने डीएसएलएसए को कानून के अनुसार गर्भावस्था के कारण महिला के पक्ष में अर्जित सभी चिकित्सा, मौद्रिक और अन्य लाभ जारी करने का निर्देश दिया।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि काम का माहौल एक महिला के लिए इतना अनुकूल होना चाहिए कि वह “व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के संबंध में बिना किसी बाधा के निर्णय लेने” की सुविधा प्रदान कर सके। इसमें कहा गया है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एक महिला जो करियर और मातृत्व दोनों को चुनती है।

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने फैसला सुनाया, कि “अधिनियम की भाषा या इसके प्रावधानों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह बताता हो कि एक कामकाजी गर्भवती महिला को उनके रोजगार की प्रकृति के कारण राहत पाने से रोका जाएगा।