Home सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, एक जैसे सबूत होने पर एक दोषी और दूसरे को नहीं किया जा सकता बरी, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के साथ उन्हे भी किया बरी, जिन्होंने अपील नहीं की थी दायर

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, एक जैसे सबूत होने पर एक दोषी और दूसरे को नहीं किया जा सकता बरी, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के साथ उन्हे भी किया बरी, जिन्होंने अपील नहीं की थी दायर

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, एक जैसे सबूत होने पर एक दोषी और दूसरे को नहीं किया जा सकता बरी, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के साथ उन्हे भी किया बरी, जिन्होंने अपील नहीं की थी दायर

13 सितंबर (बुधवार) को उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने क्रिमिनल अपील नंबर 1012/2022 जावेद शौकत अली कुरेशी बनाम गुजरात राज्य के मामले में सुनवाई के दौरान फैसला सुनाते हुये कहा, “जब चश्मदीद गवाहों ने दो आरोपियों की समान भूमिका बताई हो और सबूत भी समान हों तो अदालत एक आरोपी को दोषी नहीं ठहरा सकती और दूसरे को बरी नहीं कर सकती। दोनों आरोपियों के मामले समता के सिद्धांत द्वारा शासित होंगे। इस सिद्धांत का अर्थ है कि आपराधिक न्यायालय को समान मामलों में समान निर्णय लेना चाहिए और ऐसे मामलों में न्यायालय दो आरोपियों के बीच अंतर नहीं कर सकता है, जो भेदभाव होगा।” पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार क्षेत्र को स्वत: संज्ञान से भी लागू किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने इस फैसले के जरिये कुछ आरोपी व्यक्तियों की सजा को खारिज कर दिया, जबकि उन्होंने खुद कोई अपील दायर नहीं की थी। एक अन्य आरोपी व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए, न्यायालय ने कहा कि सभी आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सबूत समान थे। इसलिए, एक आरोपी को बरी किए जाने का लाभ दूसरे आरोपियों को भी दिया जाना चाहिये, भले ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से संपर्क न किया हो।

मामले में 3 लोगों को अदालत ने कर दिया था बरी

अदालत ने 2018 में पारित एक आदेश का भी उल्लेेख किया, जिसमें एक अन्य आरोपी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को सरसरी तौर पर खारिज कर दिया गया था। मौजूदा मामले में, 2013 में गुजरात में भीड़ हिंसा के एक मामले में कुल 13 लोगों पर मुकदमा चलाया गया था। जिसमें क्रम संख्या 1 से 6 और क्रम संख्या 13 को दोषी ठहराया गया, जिन्हे 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई और बाकी को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया। मई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी 2 द्वारा दायर एसएलपी को सरसरी तौर पर खारिज कर दिया था, हालांकि, अगस्त 2018 में, कोर्ट ने तीन अन्य आरोपियों – आरोपी 1, 5 और 13- की अपील की अनुमति दी और उन्हें बरी कर दिया था।

वर्तमान अपील अभियुक्त 6 द्वारा दायर की गई थी। अभियुक्त 3 और 4 ने कोई अपील दायर नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोपी नंबर 3 और 4 को मुकदमे में आरोपी नंबर 1, 5 और 13 के रूप में रखा गया था, जिन्हें शुरू में दो पुलिस कांस्टेबलों, PW-25 और PW-26 की गवाही के आधार पर दोषी ठहराया गया था। हालांकि, बाद में शीर्ष अदालत ने PW-25 और PW-26 के सबूतों को अविश्वसनीय पाते हुए आरोपी 1, 5 और 13 की सजा को रद्द कर दिया था। इस मामले में अदालत ने आरोपी नंबर 2 को भी राहत दी और उसे आरोपी नंबर 1, 5 और 13 के समान स्तर का पाया, जिन्हें पहले शीर्ष अदालत ने बरी कर दिया था।

अदालत ने कहा, “आरोपी नंबर 2 को समता का लाभ मिलना चाहिए। आरोपी नंबर 2 ने 2018 में शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी सजा को चुनौती दी थी। हालांकि शीर्ष अदालत ने बिना कारण दर्ज किए उसकी विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी।“ शीर्ष अदालत ने मौजूदा मामले पर विचार करते हुए 2018 के आदेश को रद्द कर दिया भले ही आरोपी 3 और 4 ने कोई अपील नहीं की, और आरोपी नंबर 2 की अपील पहले ही शीर्ष अदालत द्वारा खारिज कर दी गई थी, आरोपी 1,5 और 13 को दिए गए लाभ का विस्तार नहीं करना भेदभाव के समान होगा।

आदेश की कॉपी यहाँ से प्राप्त करें।

Download Order copy 13-Sep-2023

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