Tuesday, July 29, 2025
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पत्रकारों के घर दिल्ली पुलिस की छापेमारी और गिरफ्तारी को लेकर पत्रकारों के संगठन ने सीजेआई को लिखा पत्र, कहा, मीडिया के खिलाफ जांच एजेंसियों के दमनकारी इस्तेमाल को करें खत्म

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मंगलवार 3 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल टीम ने न्यूज़ क्लिक वेबसाइट से जुड़े कई पत्रकारों और संपादकों के घरों पर छापेमारी की थी। इस छापेमारी को लेकर डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन, इंडियन वूमेन प्रेस कॉर्प्स, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली सहित कई अन्य मीडिया संगठनों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर न्यायपालिका से मांग की, “मीडिया के खिलाफ जांच एजेंसियों के दमनकारी इस्तेमाल को खत्म करें और इसके लिये कदम उठाएं, साथ ही पुलिस द्वारा पत्रकारों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त करने पर न्यायपालिका से दिशा-निर्देश दिये जाने की मांग की है।

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4 अक्टूबर को डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन, इंडियन वूमेन प्रेस कॉर्प्स, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स, नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया चंडीगढ़ प्रेस क्लब सहित अनु मीडिया संगठनों ने पत्र लिखकर कहा है कि पिछले 24 घंटों के घटनाक्रम ने हमारे पास आपकी अंतरात्मा से संज्ञान लेने और हस्तक्षेप करने की अपील करने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाये और एक निरंकुश पुलिस राज्य आदर्श बन जाए।

पत्र में न्यायपालिका से संविधान में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल्यों को बनाए रखने का आग्रह किया गया है। पत्र में कहा गया कि “सच्चाई यह है कि आज भारत में पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग खुद को प्रतिशोध के खतरे के तहत काम करता हुआ पाता है और यह जरूरी है कि न्यायपालिका सत्ता का सामना बुनियादी सच्चाई से करे कि एक संविधान है जिसके प्रति हम सभी जवाबदेह हैं।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ऑनलाइन न्यूज़ वेबसाइट न्यूज़क्लिक से जुड़े दर्जन भर संपदाकोन और पत्रकारों के घर पर 3 अक्टूबर को छापेमारी कर तलाशी ली थी, जिसमें कई पत्रकारों को हिरासत में लिया था, जिसमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत न्यूज़क्लिक के दो संपादकों को गिरफ्तार कर मोबाइल फोन और कंप्यूटर जब्त कर लिये थे। जबकि हिरासत में लिए पत्रकारों को पूंछतांछ के बाद छोड़ दिया था।

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संगठनों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया, ”पत्रकारिता पर ‘आतंकवाद’ के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जो हमें बताते हैं कि आखिरकार यह कहां जाता है। हाल के दिनों में कई मौकों पर देश की जांच एजेंसियों को प्रेस के खिलाफ हथियार बनाया गया है। उत्पीड़न के साधन के रूप में और स्वतंत्र प्रेस पर अंकुश लगाने के साधन के रूप में पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह और आतंकवाद के मामले दर्ज किए जा रहे हैं। मीडिया को धमकी समाज के लोकतांत्रिक ताने-बाने को प्रभावित करती है और पत्रकारों को एक केंद्रित आपराधिक प्रक्रिया के अधीन करना क्योंकि सरकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनके कवरेज को अस्वीकार करती है, प्रतिशोध की धमकी से प्रेस को शांत करने का एक प्रयास है, वही घटक जिसे आपने स्वतंत्रता के लिए खतरे के रूप में पहचाना है।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया सहित अन्य संगठनों द्वारा लिखा गया पत्र

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