
उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में लखनऊ के रहने वाले अधिवक्ता अशोक पांडेय ने केरल की वायनाड़ लोकसभा सीट से सांसद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता की बहाली के खिलाफ याचिका दायर की है। इस याचिका में कहा है कि एक बार संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (3) के साथ संविधान के अनुच्छेद 102, 191 के संचालन से जब अपना पद खो देता है, तो वह तब तक अयोग्य घोषित रहेगा, जब तक कि वह किसी हाईकोर्ट द्वारा उसके खिलाफ लगाए गये आरोपों से बरी नहीं हो जाता।
4 अगस्त को मिली थी सुप्रीम कोर्ट से राहुल को राहत
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद लोकसभा की संसद सदस्यता बहाल कर दी गई थी, उससे पहले मार्च में कर्नाटक में दिये गए चुनावी भाषण, में मोदी सरनेम के मामले में गुजरात की सूरत सेशन कोर्ट ने उन्हें आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया था जिसमें उन्हे 2 वर्ष की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी लोकसभा सचिवालय द्वारा नोटीफिकेशन जारी करने के बाद उनकी सदस्यता को रद्द कर दिया था।
सजा को किया गया निलंबित, अभी नहीं किया गया बरी
अधिवक्ता अशोक पाण्डेय द्वारा दायर याचिका में अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयोग को दोषसिद्धि और सजा के मामले में खाली हुई सीटों को अधिसूचित करने के लिए एक परमादेश जारी किया जाये। याचिका में तर्क दिया गया है कि सीआरपीसी की धारा 389 अपीलीय अदालत को दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील सुनने की अनुमति देती है ताकि सजा को निलंबित किया जा सके और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा किया जा सके। यह अपीलीय अदालत को दोषसिद्धि को निलंबित करने की अनुमति नहीं देती है।
उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि एक बार आपराधिक मानहानि मामले में दोषी ठहराये जाने और 2 साल की कैद की सजा पाने के बाद गांधी ने अपनी लोकसभा सदस्यता खो दी थी। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उनकी खोई हुई सदस्यता को वापस बहाल करना उचित नहीं था और इसलिए, याचिका में अनुरोध किया गया है कि लोकसभा अधिसूचना को रद्द कर दिया जाए।
दाखिल याचिका में कहा गया “अध्यक्ष का आदेश महज एक औपचारिक आदेश था, जिसके माध्यम से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता के पद की रिक्ति को अधिसूचित किया गया था। राहुल गांधी को संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में चुने जाने या होने तक अयोग्य घोषित किया गया है। उनकी सजा को अपीलीय अदालत ने रद्द नहीं किया है और इसलिए उनकी सदस्यता को बहाल करना और उन्हें संसद सदस्य के रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति देना, आर.पी एक्ट 1951 कह धारा 8 (3) सहपठित संविधान के अनुच्छेद 102 का स्पष्ट उल्लंघन है।”