Thursday, July 31, 2025
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सुप्रीम कोर्ट में मुजफ्फरनगर थप्पड़ कांड की हुई सुनवाई, यूपी सरकार और पुलिस से किये सवाल, कहा धर्म के आधार पर छात्र को दंडित किया जाता है, तो शिक्षा नहीं है गुणवत्तापूर्ण

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सोमवार को उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी द्वारा दायर याचिका WP Crl. नंबर 406/2023 तुषार गांधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में सुनवाई की, जिसमें मुजफ्फरनगर के एक स्कूली छात्र को महिला शिक्षक द्वारा दूसरे सहपाठी से थप्पड़ मारने के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के तरीके पर असंतोष व्यक्त किया। पीठ ने एफआईआर दर्ज करने में देरी और सांप्रदायिक आरोपों को छोड़े जाने पर सवाल उठाते हुये निर्देश दिया कि मामले की जांच एक वरिष्ठ आईपीएस रैंक के पुलिस अधिकारी से कराई जाए।

न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने कहा, “शिक्षा के अधिकार अधिनियम के आदेश का पालन करने में “प्रथम दृष्टया राज्य की ओर से विफलता” है, जो छात्रों के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न और धर्म और जाति के आधार पर उनके भेदभाव को रोकता है। कोर्ट ने आदेश में कहा, “यदि आरोप सही है, तो यह एक शिक्षक द्वारा दिया गया सबसे खराब प्रकार का शारीरिक दंड हो सकता है, क्योंकि शिक्षक ने अन्य छात्रों को पीड़ित पर हमला करने का निर्देश दिया था..। “न्यायालय ने कहा कि हालांकि छात्र के पिता द्वारा दायर शिकायत संज्ञेय अपराध से संबंधित थी, लेकिन तुरंत कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी। शुरुआत में केवल एक गैर-संज्ञेय रिपोर्ट दर्ज की गई थी और घटना के लगभग दो सप्ताह बाद 6 सितंबर को “लंबी देरी के बाद” एफआईआर दर्ज की गई थी।

सहपाठी से छात्र को पिटवाती शिक्षिका

न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि एफआईआर में कम्यूनल टारगेटिंग के संबंध में पीड़ित के पिता द्वारा लगाए गए आरोपों को हटा दिया गया है। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “जिस तरह से एफआईआर दर्ज की गई है, उस पर हमें गंभीर आपत्ति है।” “पिता की पहली शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया है कि शिक्षिसका एक विशेष धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर रही हैं। तथाकथित गैर-संज्ञेय रिपोर्ट में भी यही आरोप हैं। एफआईआर मंि ये आरोप नहीं हैं। न्यायाधीश ने एफआईआर में वीडियो ट्रासंक्रिप्ट की अनुपस्थिति के बारे में भी पूछा। न्यायमूर्ति श्री ओका ने कहा , “यदि आरोप सही हैं, तो उन्हें “राज्य की अंतरात्मा को झकझोर देना चाहिए”। उन्होंने कहा, “यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। शिक्षिका छात्रों को एक सहपाठी को मारने के लिए कह रही हैं क्योंकि वे एक विशेष समुदाय से हैं! क्या यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है? राज्य को बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यदि आरोप सही हैं तो इससे राज्य की अंतरात्मा को झटका लगना चाहिए।”

यूपी राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम नटराज ने कहा कि राज्य किसी को नहीं बचा रहा है, बल्कि उन्होंने कहा कि “सांप्रदायिक पहलू को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है”। हालांकि पीठ वीडियो ट्रांसक्रिप्ट की ओर इशारा करते हुए उनसे असहमत दिखी। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “ट्रांसक्रिप्ट ऐसा कहता है। इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यदि यह घटना सही है तो शिक्षिका छात्रों से कह रहा है कि वह एक विशेष समुदाय से है, तो उसे मारो, किस तरह की शिक्षा दी जा रही है?”

यदि किसी छात्र को केवल धर्म के आधार पर दंडित किया जाता है तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती’ पीठ ने आदेश में आरटीई अधिनियम और नियमों के प्रावधानों का उल्लेख किया, जो छात्रों के मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न और उनके भेदभाव पर रोक लगाते हैं। पीठ ने कहा, “यदि किसी छात्र को केवल इस आधार पर दंडित करने की मांग की जाती है कि वह एक विशेष समुदाय से है, तो कोई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती है। आरटीई अधिनियम और नियमों के अनिवार्य दायित्वों का पालन करने में राज्य की ओर से प्रथम दृष्टया विफलता है।”

आरटीई अधिनियम के तहत यूपी सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के तहत, स्थानीय प्राधिकारी को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी बच्चे को स्कूल में जाति, वर्ग, धार्मिक या लिंग दुर्व्यवहार या भेदभाव का शिकार न होना पड़े। पीठ ने कहा, “इसलिए, किसी स्कूल में कोई धार्मिक दुर्व्यवहार नहीं हो सकता।” पीठ ने राज्य को एक पेशेवर काउंसलर की सेवाओं के साथ पीड़ित छात्र को काउंसलिंग प्रदान करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जिन अन्य छात्रों को शिक्षक ने पीड़िता को पीटने के लिए कहा था, उन्हें भी काउंसलिंग की जरूरत है। राज्य याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए बहस के दौरान, एएसजी ने याचिकाकर्ता द्वारा महात्मा गांधी के परपोते के रूप में अपनी स्थिति का हवाला देने पर आपत्ति जताई। हालांकि, पीठ ने कहा कि वह याचिका को स्वत: संज्ञान की कार्यवाही के रूप में भी मान सकती है, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि यह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर राज्य की निष्क्रियता के आरोप उठाती है।

कोर्ट ने कहा, “इस तरह के मामले में, राज्य को याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह एक ऐसा मामला है जहां न केवल आपराधिक कानून प्रक्रिया शुरू की गई थी, बल्कि मौलिक अधिकारों और आरटीई कानून का उल्लंघन भी हुआ था।” आखिरी मौके पर अदालत ने मुजफ्फरनगर पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी करते हुए जांच की प्रगति और नाबालिग पीड़िता की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

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