
शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बड़ी संख्या में स्थगन अनुरोधों को दर्शाने वाले आंकड़ों का हवाला देते हुये कहा कि मैं नहीं चाहता कि यह न्यायालय ‘तारीख-पे-तारीख’ वाली अदालत बन जाये। यह बात उन्होने अपने कोर्ट रूम से कही। उन्होने प्रैक्टिस की अक्षमता पर प्रकाश डालते हुये बार के सदस्यों से अनुरोध करते हुये कहा कि वह तभी स्थगन मांगें जब अत्यंत आवश्यक हो।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आज 178 स्थगन स्लिप्स हैं। 1 सितंबर से 3 सितंबर तक प्रतिदिन औसतन 154 स्थगन स्लिप प्रसारित की जाती हैं। 2 महीनों में 3688 स्थगन स्लिप। इससे दाखिल करने और सूचीबद्ध करने का उद्देश्य विफल हो जाता है। उन्होंने कहा कि सितंबर 2023 से अदालत में तत्काल सूची के लिए 2,361 मामलों का उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रतिदिन औसतन 59 मामलों का उल्लेख किया गया है। इसने एक विरोधाभास पैदा कर दिया है जहां मामलों को शुरू में जल्दी से सूचीबद्ध किया जाता है लेकिन बाद में स्थगित कर दिया जाता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुये कहा कि एक तरफ मामलों को त्वरित आधार पर सूचीबद्ध किया जाता है दूसरी तरफ, उनका उल्लेख किया जाता है, फिर उन्हें सूचीबद्ध किया जाता है और फिर उन्हें स्थगित कर दिया जाता है। मैं बार के सदस्यों से अनुरोध करता हूं कि वे स्थगन की मांग न करें जब तक कि वास्तव में आवश्यक न हो। यह तारीख पे तारीख अदालत नहीं बन सकती। इससे हमारी अदालत पर नागरिकों का भरोसा खत्म होता है। सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में वकील एक पत्र प्रसारित करके स्थगन की मांग कर सकते हैं, जबकि हाईकोर्ट में मामला आने पर न्यायाधीश के समक्ष स्थगन का अनुरोध करना पड़ता है और अनुरोध को स्वीकार करना न्यायाधीश के विवेक के अधीन है।