
22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एसवीएन भाटी की खंडपीठ ने विशेष जनहित याचिका सिविल 19401/2019 और 19730/2019 शिरडी नगर पंचायत बनाम किशोर शरद बोरवाके और अन्य तथा नारायणराव जगोबाजी गोवांडे पब्लिक ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र सरकार व सात अन्य के मामले में बांबे हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुये कहा, “अगर सरकार भूमि के विकास के लाभ के लिये उसके एक हिस्से को विभाजित करके भू मालिक से उसका एक छोटा हिस्सा मुफ्त में मांगती है तो ऐसे किसी नियम को अवैध नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एसवीएन भाटी की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुये इस मामले में रिट याचिका पर हाईकोर्ट के फैसले को गलत माना और 22 सितंबर के फैसले में कहा कि इसीलिए हमने अपील को स्वीकारते हुये 4 जुलाई, 2019 के साझा फैसले को दरकिनार कर दिया। इन दोनों ही मामलों में अपीलकर्ता शिरडी नगर पंचायत ही थी।
बता दे कि 15 दिसंबर, 1992 को नगरपालिका ने एक विकास कार्ययोजना को मंजूरी दी। इसके जरिये 30 सितंबर, 2000 को एक प्रस्ताव के जरिये जमीन के उपयोग की प्रकृति को नो डेवलेपमेंट जोन से बदलकर आवासीय जोन में बदल दिया। 18 अगस्त, 2004 को सरकार ने कुछ जमीनों के उपयोग की प्रकृति बदले जाने के एवज में दस प्रतिशत खुले स्थान को निशुल्क नगरपालिका को वापस देने का निर्देश दिया। भू मालिकों ने प्लाट के विकास के लिए नगर योजना प्राधिकरण से अनुमति मांगी तो उसे सशर्त मंजूर कर दिया गया।
इस संबंध में 27 मार्च, 2006 को भू मालिकों ने नगर पालिका के साथ एक समझौता भी किया। इसके अनुसार कुल भूमि का कुछ हिस्सा खुला स्थान छोड़ा जाए जिसे बाद में नगरपालिका को वापस कर दिया जाए, लेकिन 2012 में जब नगरपालिका ने वह जमीन वापस मांगी तो भू मालिको ने एक दीवानी केस कर दिया।
आदेश की कॉपी यहाँ से प्राप्त करें