Sunday, August 3, 2025
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सुप्रीम कोर्ट ने राघव चड्ढा की याचिका पर राज्यसभा सचिवालय को नोटिस भेजकर मांगा जबाब, निलंबन को लेकर की थी याचिका दायर

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सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा की ओर दाखिल की गई याचिका डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1155/2023 राघव चड्ढा बनाम राज्यसभा सचिवालय और अन्य (जिसमें मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को राज्यसभा से राघव चड्डा को निलंबित कर दिया था) पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी करते हुये जबाब देने को कहा, साथ ही इस मामले की सुनवाई 30 अक्टूबर तय की, साथ ही मामले पर फैसला लेने के लिए अदालत ने अटॉर्नी जनरल से मदद मांगी है।

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11 अगस्त को मानसून सत्र में किया गया था निलंबित

बता दे कि आप के पंजाब राज्य के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन 11 अगस्त को राज्यसभा से निलंबित कर दिया था। उन पर दिल्ली सर्विस (अमेंडमेंट) बिल को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजेने के प्रस्ताव पर सांसदों के फर्जी दस्तखत कराने का आरोप लगा है। भाजपा की शिकायत के बाद यह मामला संसद की विशेषाधिकार समिति के पास जांच के लिए भेज दिया गया था। आप सांसद इसके खिलाफ 10 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जिस पर सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की।

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आप सांसद के वकील ने उठाए प्रश्न

आप सांसद राघव चड्ढा के वकील राजेश द्विवेदी ने सवाल उठाते हुये प्रश्न किया कि सांसद का निलंबन उस विशेष सत्र से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है, जिसमें उसे निलंबित करने का फैसला लिया गया हो। यह राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा है, क्या जांच लंबित रहने तक किसी सांसद को निलंबित करने का कोई औचित्य है? अधिवक्ता द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 105​ में सांसद को सदन के भीतर बोलने की आजादी मिली है, जबकि अनुच्छेद 19(1)(a) में संसद के बाहर बोलने की आजादी मिली है। उन्होने कहा कि क्या रूल 256 और रूल 266 राज्यसभा के सभापति को जांच लंबित रहने तक निलंबन का आदेश पारित करने का अधिकार देते हैं?

वकील द्विवेदी ने कहा कि चयन समिति बहुदलीय समिति होनी चाहिए और इसके सदस्यों को परिषद द्वारा ही नियुक्त किया जाता है। सदस्य केवल कुछ सदस्यों को ही प्रस्ताव दे सकता है और चड्ढा का प्रस्ताव केवल इसी आशय का है। उन्होंने दावा किया कि अतीत में प्रस्तावित सदस्यों की इच्छा का पता लगाए बिना उनके नामों का हवाला देते हुए चयन समिति के लिए प्रस्ताव पेश करने की 11 घटनाएं हुई हैं।

यदि सदस्य कहते हैं कि वे इच्छुक नहीं हैं तो उनका नाम हटा दिया जाता है और किसी और को नियुक्त कर दिया जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि यह स्थापित परंपरा रही है और किसी भी सदस्य को उनकी सहमति के बिना चयन समिति के सदस्यों को प्रस्तावित करने के लिए किसी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा है।

चड्ढा के प्रस्ताव के संबंध में यह किसी भी मामले में रद्द हो गया था। चड्ढा की ओर से पेश एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड शादान फरासत ने कहा कि घटना के संबंध में कोई ‘विशेषाधिकार’ मौजूद नहीं है। इसलिए “विशेषाधिकार का उल्लंघन” नहीं हो सकता है। उन्होंने आशीष शेलार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2022) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि सदन के किसी सदस्य को एक सत्र से अधिक निलंबित नहीं किया जा सकता।

जैसे ही पीठ ने नोटिस जारी करने की इच्छा जताई द्विवेदी ने कहा कि वह कोई अंतरिम राहत नहीं मांग रहे हैं। राज्यसभा सचिवालय के खिलाफ दायर रिट याचिका में आप नेता ने “अनिश्चितकालीन निलंबन” को अवैध और मनमाना बताते हुए चुनौती दी है।

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