उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने क्रिमिनल अपील संख्या 1457/2015, अभिषेक बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में 31 अगस्त को सुनवाई की, तीन जजों की पीठ ने महिला द्वारा देवर, सास के खिलाफ दर्ज कराये गये आईपीसी की धारा 498 ए के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है। पीठ ने कार्रवाई को रद्द करते हुए कहा, “आरोप, सामान्य और साधारण किस्म के” थे।
महिला ने दर्ज कराई थी 484ए के तहत एफआईआर
महिला ने अपनी सास और दो देवरों के खिलाफ 498 ए के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसके बाद महिला के देवर और सास ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
तलाक की याचिका दायर के बाद दर्ज कराई एफआईआर
तीन जजों की पीठ ने कहा कि मामले में कई आरोप असंभावित और असंगत थे। पीठ ने कहा, “देवर अलग-अलग शहरों में रहते थे और उनके साथ शिकायतकर्ता की बातचीत केवल त्योहारों के मौको तक ही सीमित थी। शिकायतकर्ता लगभग दो वर्षों तक अपने वैवाहिक घर में रही। 2009 में उसने स्वेच्छा से वह घर छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहना शुरू कर दिया। अदालत ने जो सबसे चौंकाने वाला तथ्य नोट किया, वह यह था कि 8 जून 2013 में महिला के पति निमिश ने तलाक की मांग के लिये याचिका दायर की थी, जिसके तुरंत बाद महिला ने नरसिंहपुर जनपद के कोतवली में शिकायत दर्ज कराई गई थी। इसके अलावा पत्नी ने न्यायिक सेवा में कार्यरत अपने देवर के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को भी एक गुमनाम शिकायत भेजी थी, बाद में महिला ने उसे स्वीकार भी किया, कि उसने ही देवर के खिलाफ शिकायत भेजी थी।
तीन जजों की पीठ ने कहा, “वैवाहिक विवादों में पति के परिजनों के खिलाफ पत्नी की ओर शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए याचिका दायर करने के उदाहरण न तो दुर्लभ हैं और न ही हाल में पैदा हुआ चलन है। “कोर्ट ने फैसले में ऐसे कई उदाहरणों का जिक्र किया जिनमें ये माना गया है कि ससुराल पक्ष के खिलाफ अपराध के मामलों को रद्द किया जा सकता है, अगर वह सामान्य और साधारण किस्म के हैं। कहकशां कौसर उर्फ सोनम और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य, [(2022) 6 SSC 599] और महमूद अली और अन्य यूपी राज्य और अन्य क्रिमिनल अपील नंबर 2341 ऑफ 2023, मामले में हाल के फैसले का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया था कि यदि एफआईआर/शिकायत को व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण दर्ज किया गया है, तो उसे रद्द करने के लिए संबंधित परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से अपने देवर के खिलाफ गुमनाम शिकायत दर्ज कराने का कृत्य व्यक्तिगत दुश्मनी का संकेत देने वाली परिस्थिति है। फैसले में कहा गया कि पत्नी ने 2009 में स्वेच्छा से अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था और पति की ओर से तलाक की मांग किए जाने के जाने के तुरंत बाद 2013 में शिकायत दर्ज की गई थी।
पीठ को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एफआईआर में उल्लेख किया गया है कि अपराध 2007 और 2013 के बीच हुए थे, हालांकि 2009 के बाद उत्पीड़न के संबंध में कोई आरोप नहीं है। शिकायत में देवरों द्वारा उत्पीड़न के किसी विशेष उदाहरण का उल्लेख नहीं किया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता को मैक्सी पहनने के लिए ताना देने वाला सास का कथित बयान क्रूरता नहीं माना जाएगा।
तीन जजों की पीठ ने कहा, “महिला के आरोप ज्यादातर सामान्य और साधारण किस्म के हैं, बिना किसी विशेष विवरण के, कि कैसे और कब उसका सास और देवर, जो पूरी तरह से अलग-अलग शहरों में रहते थे, उन्होंने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया।” शिकायतकर्ता का एक अन्य आरोप यह था कि एक देवर ने अपनी शादी की तारीख पर शिकायतकर्ता और उसके माता-पिता से मांग की कि वे उसे 2.5 लाख रुपये और एक कार प्रदान करें। कोर्ट ने इसमें कहा, “वह अपनी शादी के समय अपनी भाभी से दहेज की ऐसी मांग क्यों करेगा, भले ही वह इस तरह के गैरकानूनी काम करने के लिए इच्छुक हो, इसे समझ पाना मुश्किल है और यह संसंगत है।” न्यायालय ने कहा कि आरोप “दूर की कौड़ी” और “असंभवना” हैं। यह कहते हुए कि आपराधिक प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देना “स्पष्ट अन्याय” होगा, न्यायालय ने आपराधिक मामले को रद्द कर दिया।
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