Home सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को अवैध करार घोषित किया, कहा कि 6 मार्च चुनाव आयोग को दें हिसाब, 13 मार्च तक ऑफिशियल वेबसाइट पर करें प्रकाशित

सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को अवैध करार घोषित किया, कहा कि 6 मार्च चुनाव आयोग को दें हिसाब, 13 मार्च तक ऑफिशियल वेबसाइट पर करें प्रकाशित

सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को अवैध करार घोषित किया, कहा कि 6 मार्च चुनाव आयोग को दें हिसाब, 13 मार्च तक ऑफिशियल वेबसाइट पर करें प्रकाशित
सुप्रीम कोर्ट

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा लोकसभा चुनाव से पहले 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध करार दिया, साथ ही इसके माध्यम से चंदा लेने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि फैसला सुनाते हुए कहा कि राजनीतिक में दल अहम यूनिट होते हैं। राजनैतिक चंदा की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चयन मिलता है। मतदाताओं को चुनावी चंदा के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।’

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू करना बंद कर दें, साथ ही कहा कि चुनाव आयोग को 12 अप्रैल 2019 तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अब तक खरीदे गये इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी दे। कोर्ट ने कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया राजनीतिक दल की ओर से कैश किये गये हर इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल दे, साथ ही कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे और यह सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है साथ ही कंपनी एक्ट में संशोधन मनमाना और असंवैधानिक कदम है। इसके जरिए कंपनियों की ओर से राजनीतिक दलों को असीमित फंडिंग का रास्ता खुला। इसके अलावा निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है।

2 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला

2 नवंबर 2023 को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने तीन दिन की सुनवाई के फैसला सुरक्षित रख लिया था, इसको लेकर अदालत में चार याचिकाएं दाखिल की गई थी। याचिका कर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल है, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिका कर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में 1 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। पहले नकद में चंदा दिया जाता था, लेकिन अब चंदे की गोपनीयता दानदाताओं के हित में रखी गई है।

चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी?

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे, जबकि सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी।

31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में पहले दिन की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे, जबकि सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी।

प्रशांत भूषण ने कहा था कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। नागरिकों को जानने का हक है कि किस पार्टी को कहां से पैसा मिला।

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