Thursday, July 31, 2025
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सुप्रीम कोर्ट ने लंबित 70 जजों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार के रवैये पर जताई चिंता, कोर्ट ने कहा, सरकार इतने समय बाद भी नहीं उठा सकी कदम

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स्प्रीममंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने बेंगलुरु के एडवोकेटस एसोसिएशन की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए देश के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में देरी पर चिंता जताई है, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केंद्र सरकार के रवैये पर चिंता व्यक्‍त की है। बेंच ने कहा कि इस मामले में पिछली सुनवाई सात महीने पहले हुई थी, लेकिन इतने समय बाद भी सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया।

केंद्र सरकार के पास लंबित है 70 कॉलेजियम सिफारिश

मणिपुर हाईकोर्ट समेत कई हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर वेंकटरमणी के साथ अपनी चिंता साझा करते हुये कहा कि 11 नवंबर 2022 से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई 70 कॉलेजियम सिफारिशें केंद्र सरकार के पास लंबित हैं। इनमें से सात नाम ऐसे हैं, जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है। न्यायमूर्ति कौल ने बताया कि चार दिन पहले तक 80 फाइलें लंबित थीं और उसके बाद सरकार ने दस फाइलों को मंजूरी दे दी, मगर मौजूदा आंकड़ा 70 है। इसमें 9 जजों के नाम कॉलेजियम ने पहली बार भेजे हैं, जबकि 7 नाम दूसरी बार भेजे गये हैं और एक मुख्य न्यायाधीश का नाम प्रमोशन के लिए भेजा है साथ ही 26 जजों के नाम ट्रांसफर के लिए भेजे हैं।

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा अप्रैल तक दे मंजूरी

पीठ ने सरकार की ओर से पैरवी करने अदालत पहुंचे अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी से कहा, “आप हाईकोर्ट की ओर दिये गये नामों पर सरकार से निर्देश लें और नामों को अप्रैल के आखिर तक मंजूरी दें। जिस पर भारत के अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने अदालत से एक सप्ताह का समय मांगा है, इस मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी।

कोर्ट ने कहा बारीकी से जांच करेंगे

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि कुछ मायनों में हमने इन चीजों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। अब हम इसकी बारीकी से जांच करना चाहते हैं। वही याचिकाकर्ता की मांग जिसमें दावा किया गया था कि सरकार ने कॉलेजियम की ओर से भेजे नामों को मंजूरी देने में समय सीमा का पालन नहीं किया है। यह अदालत के 2021 में दिये फैसले का उल्लंघन किया है। ऐसे में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाये। कॉमन कॉज नाम केएनजीओ ने भी इसी मामले में कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर कोर्ट ने इसी मामले में शामिल कर सुनवाई की।

देरी होने के कारण अधिवक्ता नाम ले रहे वापिस

कॉमन कॉज की ओर से अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण पेश हुये, जिन्होंने कहा कि कॉलेजियम की ओर से दोबारा भेजे गये 16 नाम केंद्र के पास लंबित हैं। वहीं, कई अधिवक्ताओं ने तो नियुक्ति में हो रही देरी को देखते हुये अपने नाम वापस ले लिये। जिस पर न्यायमूर्ति कौल ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की बात पर सहमति जताई, उन्होंने कहा कि देर होने पर कुछ लोगों की रुचि कम हो गई और उन्होंने अपने नाम वापस ले लिये, जिसमें एक-दो बहुत योग्य थे। अटॉर्नी जनरल ने जो आश्वासन दिया है, उसके बाद मैं हर 10 दिन में इस मुद्दे को उठाउंगा। मैंने इस मामले पर बहुत कुछ कहने के बारे में सोचा था, लेकिन वो एक हफ्ते का समय मांग रहे हैं, इसीलिए मैं खुद को रोक रहा हूं।

एडवोकेटस एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने कहा कि केंद्र सरकार कॉलेजियम की ओर से भेजे गये नामों को मंजूरी देने में समय सीमा का पालन करे, यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ा प्रयास करना चाहिये, वही वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दातार की दलील का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि मुझे यकीन है कि अधिवक्ता कोशिश करेंगे, लेकिन यह उनके दायरे से बाहर हो सकता है।

कानून मंत्री ने सीजेआई को लिखी थी चिट्ठी 

केंद्र सरकार ने जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी थी कि कॉलेजियम में उसके प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाये। कानून मंत्री किरण रिजिजू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर कहा था कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकारी प्रतिनिधि शामिल करने से सिस्टम में पारदर्शिता आयेगी और जनता के प्रति जवाबदेही भी तय होगी, कानून मंत्री ने नवंबर 2022 में भी ऐसा ही बयान दिया था। किरण रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। हाईकोर्ट में भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। लोकसभा उपाध्यक्ष भी कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट अक्सर विधायिका के कामकाज में दखलंदाजी करता है।

बयानबाजी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी नाराजगी

कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जारी बयानबाजी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है। यह देश का कानून है और हर किसी को इसका पालन करना चाहिए। वहीं जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी।” कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है। यह रवैया अच्छे जजों का नाम वापस लेने के लिए मजबूर करता है।

सीजेआई डी.वाई चंदचूड़

सीजेआई सहित होते 5 सदस्य

कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। भारत का मुख्य न्यायाधीश इसमें प्रमुख होता हैं। इसके अलावा 4 वरिष्ठ जज होते हैं। अभी इसमें 6 जज हैं। कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके नाम की सिफारिश केंद्र से करता है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नये जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अप्वाइंट किया जाता है। देश में कॉलेजियम सिस्टम साल 1993 में लागू हुआ था।

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