
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड बनाम भारत संघ के मामले में सुनवाई करते हुये, उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट में प्राचीन स्मारकों और पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम, 1958 में परिभाषित रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की प्रार्थना की थी। यह याचिका लखनऊ के अधिवक्ता अशोक पांडेय के माध्यम से हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा दायर की गई थी, जिसमें रामसेतु स्थल पर समुद्र में कुछ किलोमीटर/मीटर तक दीवार बनाने की मांग की गई थी ताकि हर कोई जाकर रामसेतु के ‘दर्शन’ कर सके।
याचिकाकर्ता ने सुब्रमण्यम स्वामी की लंबित याचिका के साथ जोड़ने की मांग की
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया कि इस याचिका को डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा ‘राम सेतु’ को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा देने की मांग वाली लंबित याचिका के साथ जोड़ दिया जाये। हालांकि पीठ ने यह कहते हुए ऐसा करने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया कि यह एक प्रशासनिक मामला है और याचिकाकर्ता को इसके बजाय सरकार से संपर्क करना चाहिये। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने सवाल किया कि अगर सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका लंबित है तो एक और याचिका की आवश्यकता क्या है। न्यायाधीश ने पूछा, ” आप क्या चाहते हैं!”
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने याचिका की खारिज
जब याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने अपनी याचिका पढ़ी तो न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने पूछा, “अदालत दीवार बनाने का निर्देश कैसे दे सकती है! यह प्रशासनिक मसाला हैं।” तब याचिकाकर्ता ने याचिका को डॉ. स्वामी की याचिका के साथ जोड़े जाने का अनुरोध किया। जिस पर पीठ ने कहा, “हम इसे नहीं जोड़ रहे हैं।“ हम याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गये किसी भी निर्देश देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। इसीलिए याचिका खारिज की जाती है।”